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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/17/07

अंधेरी गली में रौशनी की तलाश

जिनका हम करते हैं इन्तजार
वह हमसे मिलने आते नहीं
जो हमारे लिए बिछाये बैठे हैं पलकें
उनके यहां हम जाते नहीं
अपने दिल के आगे क्यों हो जाते हैं मजबूर
क्यों होता है हमको अपने पर गुरूर
जो आसानी से मिल सकता है
उससे आँखें फेर जाते हैं
जिसे ढूँढने के लिए बरसों
बरबाद हो जाते हैं
उसे कभी पाते नहीं
तकलीफों पर रोते हैं
पर अपनी मुश्किलें
खुद ही बोते हैं
अमन और चैन से लगती हैं बोरियत
और जज्बातों से परे अंधेरी गली में
दिल के चिराग के लिए
रौशनी ढूँढने निकल जाते हैं
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