अमेरिका विश्व का इस समय सामरिक दृष्टि से सबसे शक्तिशाली और आर्थिक रूप से संपन्न राष्ट्र है। इसमें कोई संदेह नहीं है विश्व के राजनैतिक पटल पर उसके अभ्युदय के बाद तमाम तरह के परिवर्तन आये हैं और ब्रिटेन ने जहाँ अपनी सेना भेजकर राज्य किया वहीं अमेरिका ने यह काम अपनी आर्थिक और तकनीकी शक्ति के बल पर यह कर दिखाया।
प्रत्यक्ष रूप से भारत का उससे कोई विरोध नहीं रहा है। १९७१ में पाकिस्तान से युद्ध के अलावा वह कही भारत के विरुद्ध प्रत्यक्ष रूप से नहीं रहा। शीतयुद्ध के दौरान भारत की सोवियत संघ से निकटता के चलते उसने भारत पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान की सहायता की पर इस दौरान उसके भारत के साथ आर्थिक, सामरिक, तकनीकी और शैक्षणिक क्षेत्रो में संबंध बढ़ते ही रहे-इस दौरान उससे हथियार तक खरीदे गए। अक्सर कहा जाता है की भारत कर्ज में डूबा है तो उसमें अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, अन्य पश्चिमी राष्ट्रों के साथ अमेरिका का भी कर्जा रहा है। भारत के इनसेट उपग्रह तो अमेरिका से ही छोडे जाते रहे थे। बस सोवियत संघ से निकटता की वजह से राजनीतिक रूप से भारत उसकी आंखों में खटकता रहा। भारत और सोवियत संघ पर दबाव बनाए रखने के लिए उसने जो प्रयास किये उसका परिणाम क्या हुआ यह अलग से विचार का विषय है।
अब भारत और अमेरिका एक दुसरे के करीब आ रहे हैं तो यह वक्त की जरूरत है। कुछ लोग अमेरिका की दादागिरी की बात करते हैं और वास्तविकता यह है कि आज कोई भी देश उसकी इस प्रवृति को रोकने में सक्षम नहीं है। जो देश उसका विरोध कर रहे हैं वह अंदरूनी रूप से आर्थिक और सामरिक दृष्टि से इतने सक्षम नहीं है कि उसका सामना कर सकें। उनके देश में ही इतने अंतर्विरोध है कि उनकी समस्याएँ नहीं सुलझ पा रहीं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत का अमेरिका से प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कौनसा विषय है जिस पर उसका विरोध करना चाहिऐ या ऐसी आशंका है कि भविष्य कि वह ऐसा कोई विरोध उत्पन्न होगा?
हमने देखा होगा कि जब कोई बात होती है तो कहा जाता है कि अमेरिका भविष्य में इस तरह के दबाव डालेगा और न मानने पर कार्यवाही करेगा। सवाल यह है कि हमारा देश सामरिक और आर्थिक दृष्टि से क्या वैसा ही कमजोर है जिन पर अमेरिका हमला कर चुका है। यहाँ एक बात याद रखें कि अमेरिका ने आज तक किसी परमाणु राष्ट्र पर हमला नहीं किया है। फिर उसने जिन पर हमला किया है वह कभी उसके ऐसे मित्र रहे हैं जिन्हें उसने खडा किया। भारत आज जहाँ खडा है तो उसके लिए यहाँ की आम जनता, वैज्ञानिक, शिक्षाविद और राजनीतिक नेताओं की इच्छा शक्ति की वजह से है-इसमें अमेरिका से भी सहयोग लिया गया है तो उसे दिया भी गया है। तोलमोल में उससे कम नहीं है फिर जिस तरह का डर प्रचारित किया जाता है वह किसी कमजोर राष्ट्र की निशानी है, और हमारा राष्ट्र आज की तारीख में कोई कमजोर राष्ट्र नहीं है।
भारत और अमेरिका में कई समानताएं हैं जिसकी वजह से दोनों एक दूसरे के स्वाभाविक मित्र बन सकते हैं। पहला दोनों देश लोकतांत्रिक हैं और दोनों तरफ खुले विचारधारा वाला समुदाय है। दूसरा दोनों किसी धर्म या खास आर्थिक विचारधारा से प्रभावित नहीं हैं। तीसरा दोनों ही घरेलू और बाह्य मोर्चों पर एक जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। चैथा दोनों ही तकनीकी दृष्टि से संपन्न हैं। मुख्य बात यह है कि दोनों की बीच कोई आर्थिक, सामरिक और वैचारिक विवाद नहीं है-जो कि दोनों को स्वाभाविक मित्र बना सकता है। हमारे यहाँ अक्सर कहा जाता है कि अमेरिका अमुक जगह यह कर रहा है और वह कर रहा है-यह गलत है। हमें यह देखना चाहिए कि अब क्या कर रहा है और आगे कर सकता है। जो उसकी नीति है कि सबसे बड़ा हित अपने देश के हित में होता है-यही नीति अपनाना चाहिए। अगर उसके दूसरे देशों में किये गए व्यवहार की बात करेंगे तो यहाँ यह भी सवाल आएगा कि दूसरे देश हमारे से कैसा व्यवहार करते आये है और क्या हमारे लिए अमेरिका जितने उपयोगी होंगें। अपने देश के हित देखकर ही इस पर विचार करना चाहिए। अमेरिका ने कई देशों पर हमला कर अपने लिये अनेक शत्रू बना लिये हैं पर भारत के लिये तो बिना किसी प्रकार का हमला किये वैसे ही अनेक शत्रू बने हुए हैं। इनमें से कई राष्ट्र वैसे तो भारत के साथ मित्रता का ढोग करते हैं पर यहां के प्रति उनके नेताओं में जो उनके मन में दुर्भावना है उसे भी सब जानते हैं।
इनमें कई देश हैं तो ऐसे हैं जो भारतीयों की आर्थिक और बौद्धिक शक्ति का उपयोग अपने हित में कर रहे हैं पर सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करते पर अमेरिका सार्वजनिक रूप से भारत का महत्व स्वीकार करता है क्या उसके लिये उसकी प्रशंसा नहीं की जानी चाहिए।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
2 comments:
वैसे आप अपने अनुभवों का वेहतर इस्तेमाल करते हुए रोचक जानकारी प्रदान की है, ज्ञानवर्धन किया है.इसमें कोई संदेह नहीं है विश्व के राजनैतिक पटल पर उसके अभ्युदय के बाद तमाम तरह के परिवर्तन आये हैं और अमेरिका विश्व का इस समय सामरिक दृष्टि से सबसे शक्तिशाली और आर्थिक रूप से संपन्न राष्ट्र है।
बात तो सही है ,हमें एस विषय पर गंभीरता से विचारना चाहिए और अपने हित का ध्यान रखते हुए फैसला करना चाहिए।...तभी अमरीका या किसी भी देश के प्रति सही संबध बनाए जा सके गे।
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