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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/12/07

ऐसे बनती है जोरदार खबर

उससे कहा गया की वह बहुत दिन से कोई खबर नहीं लाया है और आज अगर आज कोई खास नहीं लाया तो उसकी नौकरी भी जा सकती है।
वह दफ्तर से कैमरा लेकर निकला और बाहर खडा हो गया। उसने वहाँ पास से गुजरते एक आदमी से पूछा-"तुम आस्तिक हो या नास्तिक? जो भी हो तो क्यों? बताओ मैं तुम्हारा बयान और चेहरा अपने कैमरे से सबको दिखा चाहता हूँ।''
उस आदमी ने कहा-''मैं आस्तिक हूँ और अभी मंदिर जा रहा हूँ। बाकी वहाँ से लौटकर बताऊंगा।

वह चला गया तो दूसरा आदमी वहाँ से गुजरा तो उसने वही प्रश्न उससे दोहराया। उसने जवाब दिया-'मैं नास्तिक हूँ और अभी शराब पीने जा रहा हूँ। उसके कुछ पैग पीने के बाद ही बता पाऊंगा। तुम रुको मैं अभी आता हूँ।
वह अपना कैमरा लेकर टीवी टावर पर चढ़ गया। थोडी देर बाद दोनों लौटे। उसको न देखकर दोनों ने एक दूसरे से पूछा''वह कैमरे वाला कहाँ है?''
फिर दोनों का परिचय हुआ तो असली मुद्दा भी सामने आया। दोनों के बीच बहस शुरू हो गई और नौबत झगडे तक आ पहुची। दोनों अपनी कमीज की आस्तीन ऊपर कर झगडे की तैयारी कर रहे थे। उनके बीच गाली-गलौच सुनकर भीड़ इकट्ठी हो गयी थी। उसमें से एक समझदार आदमी ने दोनों से पूछा''पहले यह बताओ की यह प्रश्न आया कहाँ से? किसने तुम्हें इस बहस में उलझाया।
दोनों इधर-उधर देखने लगे। तब तक वह कैमरा लेकर नीचे उतर आया। दोनों ने उसकी तरफ इशारा किया। उसने दोनों से कहा-'आप दोनों का धन्यवाद! मुझे मिल गयी आज की जोरदार खबर!
वह चला गया। दोनों हैरान होकर उसे देखने लगे। समझदार आदमी ने कहा-तुम दोनों भी घर जाओ और उसकी जोरदार खबर देखो। हम सबने देख ली, तुम नहीं देख पाए यह जोरदार खबर, क्योंकि तुम दोनों आस्तिक-नास्तिक के झगडे में व्यस्त थे तो कहाँ से देखते। वैसे हम भी जा रहे हैं क्योंकि यह खबर दोबारा देखकर भी मजा आयेगा।
दोनों वहीं हतप्रभ खडे रहे और भीड़ के सब लोग वहाँ से चले गए अपने घर वह आज की जोरदार खबर देखने।
(मौलिक एवं स्वरचित लघुकथा)

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया! बिल्कुल सही तरीके से शिक्षा दे दी है...आप ने।...दूसरों के उक्सानें में आ कर ही यह सभी कुछ होता है और हमारे देश में यह काम मीडिया और नेता बखूबी कर रहे हैं।

Sanjay Karere said...

सोच रहा हूं कि क्‍या पत्रकारिता सचमुच इतनी बेगैरत हो चुकी है, जितना आप बताना चाह रहे हैं.

राजीव तनेजा said...

अच्छा एवँ करारा व्यंग्य...यूँ ही सबकी बखिया उधेडते रहिए...

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