मन में घुमड़ते शब्द
जब सताने लगें तब समझना
अपना अर्थ समझाने के लिए
जमीन पर उतरना चाहते हैं
जब मन में हो अकेलापन
ख्यालों में हो हो सूनापन
तब समझना कुछ शब्द हैं
तुम्हारे मन में
जो किसी अर्थ का साथ ढूंढना चाहते हैं
उन्हें जितना अपने अन्दर रोकोगे
विष बनकर डसने लगेंगे
तुम्हारे खालीपन में बीभत्स
आवाज करने लगेंगे
जब कहीं मन न लगता हो
कलम को अपना साथी बना लो
सत् साहित्य की किताबों को
अपना गुरु बना लो
जब अकेलेपन का अहसास हो
समझ लेना तुम्हारे शब्द
कागज़ पर अपना घर बनाना चाहते हैं
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शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
1 comment:
"तुम्हारे शब्द कागज़ पर अपना घर बनाना चाहते हैं"
बहुत सुन्दर रचना जो शब्दों और भावों को जीवन दान देने को लालायित है...
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