चीन के विकास के दावे विश्व के बाहर के लोग अधिक करते हैं पर कभी चीन के लोगों को इस संबंध में कुछ अधिक दावे नहीं करते देखा गया। सवाल है क्या उसके यहाँ भी विकास के दावे वैसे ही हैं जैसे यहाँ किये जाते हैं। उसके चंद शहरों के कुछ चुनींदा इलाकों के फोटो भारतीय मीडिया में दिखते हैं तो उसके यहाँ उपभोक्ता वस्तुओं के प्रयोग की संख्या बताकर कहा जाता है भारत में अभी बहुत कम है जैसे-कंप्यूटर,टीवी, मोटर कार,फ्रिज,टीवी और अन्य प्रकार की उपभोक्ता वस्तुएं।
चीन के बारे में मैंने एक पश्चिमी विशेषज्ञ की टिप्पणी पढी थी कि वह एक अंधेरी गुफा की तरह हैं वहाँ अन्दर क्या है किसी को नहीं पता। भारत के कुछ आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन का विकास भारत के लिए कभी एक माडल नहीं हो सकता क्योंकि वहाँ बोलने की आजादी नहीं है। उनके इस तर्क में दम है क्योंकि कई मामलों में हमसे आगे है वह है छल कपट और दूसरों की जमीन हड़पने के मामले में। एक बार मैं तिब्बतियों के यहाँ स्वेटर लेने गया था वहाँ वह अपने देश का नक्शा लगाकर रखते हैं ताकि लोगों को पता लगे कि वह अपने साथ एक आंदोलन चला रहे हैं। मैंने उसमें नक्शा देखा तो दंग रह गया-अगर चीन से पूरा तिब्बत हटा लिया जाये तो उसका क्षेत्रफल भारत से भी छोटा रह जायेगा। चलिए मान लें कि उसमें कुछ अतिशयोक्ति हो सकती है पर फिर भी यह सच है कि हिमालय से लगा तिब्बत उपजाऊ और खनिज संपदा से सुसज्जित चीन का हिस्सा नहीं है और मैंने कुछ ऐसे पुराने नक्शे भी देखे हैं जिसमें किसी समय में भारत के राजाओं का वहाँ पर राज्य चलता था, पर भारत ने कभी नहीं कहा कि वह हमें दें, जबकि चीन अभी भी अरुणाचल पर दावा करता हैं। चीन की सरकार ताइवान पर भी अपना दावा जताती है। मतलब अपने पडोसियों को चैन से नहीं चलने देना उसकी रणनीति है फिर भी भारत के कुछ लोग उसे अपना माडल बताते हुए थकते नहीं।
पश्चिम के कुछ पश्चिम विशेषज्ञ चीन की आर्थिक विकास स्त्रोतों को हमेशा संदेहास्पद दृष्टि से देखते हैं। 'द चाइना कमिंग वार' के लेखक पीटर नवारी का कहना है कि चीन अनुचित व्यापार से संबधित उपायों का सहारा लेता है-एक अंडर वर्ल्ड मुद्रा और दूसरा निर्यात को सब्सिडी देना। यह दोनों ही तात्कालिक रूप से उसे फायदा देते हैं पर भारत के लिए ऐसा करना संभव नहीं है क्योंकि यहाँ लोकतंत्र है और यहाँ का मीडिया इसे उछाल देगा। गलत आदमी से पैसा लेंगे तो वह केवल आर्थिक फायदा लेने से संतुष्ट नहीं होगा वह देश की अस्मिता से भी खिलवाड़ करेगा पर चीन में यह संभव नहीं है क्योंकि वह सैनिक शासन है और उसे दूसरों से खिलवाड़ करने की आदत है करने देने की नहीं। अभी तक विश्व यही नहीं जान पा रहा है कि आखिर आतंकवादियों की आर्थिक स्त्रोत कहाँ है कुछ लोगों को शक है कि आतंकवादियों को वहाँ अपने व्यापार से बहुत आर्थिक लाभ होता है। सच क्या है कोई नहीं जान पाता क्योंकि वहाँ देश और विदेश के पत्रकारों को विशेष क्षेत्रों में जाने की अनुमति है। फिर भी जिन्होंने दूरदराज के इलाकों से खबरें निकालीं हैं वह उसके दावों पर यकीन नहीं करते।
हमारे देश ने किसी देश की जमीन नहीं हड़पी और न आधिकारिक रूप से कभी किसी आपराधिक और आतंकवादी संगठन को समर्थन दिया है। इसे देश के गरीब और शोषितों ने अपने दम पर ही संघर्ष किया किसी के सामने न तो भीख मांगी न किसी को लूटा और फिर भी मुस्कराता रहा है और फिर भी उससे कहा जाता है कि तुम विकास करो देखो चीन ने विकास कर लिया है-और यह सन्देश भी ऐसा है कि जो चीनी खुद नहीं देते।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
2 comments:
मैं आपसे सहमत भी हूं और असहमत भी. दोस्त आपको नहीं लगता चीन बिना बाजार के अपनी बडी आबादी को खाना भी मुहैया नहीं करा सकता. विस्तार अभी भी भारत की विदेश नीति का हिस्सा नहीं है. जबकि चीन 62 से ही इस फिराक में है कि भारत की कुछ जमीन हडप ले. वह इसमें दो बार सफल भी रहा है. खैर. बडी मछली छोटी मछली को खाएगी ही. इस मुद्दे पर सोचते हुए हमे नेपाल भी याद रखना चाहिए और भूटान पर भारतीय "कब्जा" भी. बहस तेज रखिए.
और हां आपकी पिछली पोस्ट में ब्लॉगिंग की कुछ चातुरियों का जिक्र है. भाई हमें कितने लोग पढते हैं इससे ज्यादा जरूरी है कि कौन पढता है और क्यों पढता है. मैं आपके ब्लॉग पर आता हूं कुछ जानकारियों को इकट्ठा करने लेकिन कभी कमेंट नहीं करता. यह शायद आपकी चिंताओं में है भी नहीं कि कोई आपको कमेंट करे. हां लिखते जरूर रहे. हमें जरूरत है आपके लिखे की.
चीन के तरीके भारत नहीं अपना सकता। लेकिन उसके प्रति अत्यंत सावधान रहने की जरूरत है।
चीन की प्रगति भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगी। आतंकवाद और कट्टरपंथ को दिया जा रहा उसका गुप्त सामरिक समर्थन आने वाले दशकों में उसे भयंकर युद्ध में झोंक देगा, जो उसके भयावह विनाश का कारण बनेगा।
लोकतांत्रिक तरीके से भी हम भारत का विकास कर सकते हैं। हमें चीन की गलतियों से सीखने और उनके दोहराव से बचने की जरूरत है।
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