किसी भूखे को रोटी खिलाने का
उनकी किताबों में कोई इलाज नहीं
ढेर सारे कसूरों की सजाएं है
कसूरवार की मजबूरी समझने का
कोई कहीं रिवाज नहीं
जमाने को सिखाते हैं तमाम तरीके
जन्नत में जाने के
अपनी हकीकतो से दूर
ख्वाबों में जाने के
सर्वशक्तिमान ने कोई कानून नहीं बनाया
फिर भी उसके नाम पर सुनाते हैं
चंद किताबें पढ़कर फैसले
इंसान की भूख को पढ़ने का
कहीं कोई मिजाज नहीं
सभी को मोहब्बत का पैगाम देते हैं
पर जिस्म की भूख पर है खामोश
क्योंकि उस पर किसी का बस नहीं
अरे, ऊपर वाले का नाम लेकर
दुनियो को उसके दस्तूर पर चलाने वालों
उससे पूछ का बताओ
भूखा अगर रोटी की चोरी करे
तो उसकी सजा क्यों होना चाहिए
अगर वह इंसान के पेट में भूख नहीं बनाता तो
मान लेते उसका होगा वजूद
इस धरती पर भी कहीं
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
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