नान्यदन्येन संसृष्टरूपं विक्रयमर्हति
न चासारं न च नयूनं न दूरेण तिराहितम्
एक वस्तु के स्थान पर दूसरी, सड़ी गली, तोल में कम, परे से ठीक दिखने वाली पर खराब तथा ढकी हुई वस्तु नहीं बेचना चाहिए। जिस समय ग्राहक को वस्तु बेची जाये तो उसे उसकी वास्तविकता बता देना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-इस घोर कलियुग में तो व्यापार मेंे कदम-कदम पर धोखे हो रहे हैं। अब तो यह इतना खुलेआम होने लगा कि यह कहना कठिन है कि व्यापार में अब ईमानदारी नाम की भी रह गयी है। धोखाधड़ी को चतुराई और लुट को लोग व्यापार कहने लगे हैं। व्यापारी तो अब सब हो गये है-यहां तक कि साधू संत भी अपनी चीजें बेच रहे हैं और आश्रमों के नाम पर फाइव स्टार होटल बना रहे हैं। धर्म का केवल नाम रह गया है। उसमें भी तमाम तरह की धोखाधड़ी हो रही है। इस पर छोटे लोगों की क्या कहें बड़े-बड़े व्यापारी भी वह सब कर रहे हैं जिसे हमारे धर्मशास्त्रों ने वर्जित किया है। हालत यह है कि इधर ग्राहक से पैसे एंेठते हैं उधर तमाम तरह के दान देकर आयकर से छूट लेते हैं। सच तो यह है कि मनुस्मृति को शायद इसलिये प्रचलन से बाहर कर दिया गया है कि वह कई तरह के कटु सत्य दिखाते हुए आदमी की सही राह पर चलने के लिये प्रेरित करती है।
मनु स्मृति में मनुष्यों में सात्विकता का भाव स्थापित किया गया है। उसमें जीवन के हर पहलु पर विचार प्रकट किया गया है। व्यापार में नैतिकता की बात करने वाली इस पुस्तक में ग्राहक को न ठगने की हिदायत दी गयी है जबकि आजकल अनेक तरह के विज्ञापन धार्मिक स्थानों पर ऐसेी वस्तुओं के लिये भी किये जाते है जो वास्तव में वैसी नहीं होती जैसी की प्रचारित की जाता है। हम भारतवासी बहुत भावुक होते हैं और साधुसंतो पर विश्वास करते है। इसलिये कई तरह के ठगने वाले व्यापार उनकी आड़ में भी हो रहे है।
इसके बावजूद हमें अपने आचरण पर दृष्टि डालनी चाहिए और अगर हम व्यापार कर रहे हैं या सेवा कर रहे हैं तब हमें नैतिकता का पालन करना चाहिए।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
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