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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/29/08

विरक्ति से अनुरक्ति की ओर श्री ललित मोहन त्रिवेदी-समीक्षा

वैसे तो अंतर्जाल और निजी जीवन में बहुत मित्र हैं पर मेरे अंतर्मन में विचरते लेखक के मित्र बहुत ही कम हैं। ऐसे में दो मित्रों-अंतर्जाल पर श्रीसमीर लाल ‘उड़न तश्तरी’ और निजी जीवन में श्री ललितमोहन त्रिवेदी-का मेरे हृदय में विशेष स्थान है। मुझे नियमित रूप से पढ़ने वाले पाठक और ब्लाग लेखक श्री समीर लाल के ‘उड़न तश्तरी’ और श्री ललित मोहन त्रिवेदी के ‘अनुरक्ति’ब्लाग के बीच में मेरे ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’ और दीपक बापू कहिन’ (इन दोनों ब्लाग/पत्रिकाओं को मैं अपना मुख्य प्रवक्ता मानता हूं) को रखकर तभी सहज भाव से समझ पायेंगे जब मैं इस पर लिखूंगा।

मेरे निजी जीवन के मित्र श्री ललित मोहन त्रिवेदी अंततः लंबी प्रतीक्षा के बाद न केवल अंतर्जाल पर लिखने के लिये प्रस्तुत हुए बल्कि एक तरह से उन्होने पिछले कई वर्षों से हिंदी में लेखन के प्रति जो विरक्ति का भाव रखा हुआ था अब अनुरक्ति के साथ दोबारा शुरूआत कर रहे हैं। उड़न तश्तरी ने ‘चिट्ठा चर्चा’ में दीपक बापू कहिन के लिये लिखा था कि यह ब्लाग हिंदी ब्लाग जगत में नये अलख जगायेगा। उस समय उसे पढ़कर मैं मुस्करा कर रहे गया क्योंकि मैं एक बात जानता था कि अंतर्जाल पर मेरा एक मुकाम होगा और यह आत्मविश्वास मुझे श्री ललित मोहन त्रिवेदी की मित्रता के कारण ही प्राप्त हुआ था। उनकी और मेरी मित्रता बीस वर्ष पूर्व पुरानी है। चार पांच वर्ष तक तो नियमित मुलाकातों के बावजूद मुझे नहीं मालुम था कि यह कोई लेखक या कवि हैं। हां उनकी शक्ल सोवियत संघ के नेता लेनिन की तरह लगती थी और बातचीत में उनका सहज और गंभीर वार्तालाप मुझे प्रभावित करता था।
एक बार उनके एक कवि मित्र ने एक काव्य संग्रह प्रकाशित किया और उसके लिये समीक्षा का दायित्व श्री ललित मोहन त्रिवेदी को सौंपा। उन्होंने उस पर समीक्षा लिख कर मुझे दिखाई तो मैं दंग रह गया। मैंने उनसे कहा-‘‘ मैंने वह पुस्तक नहीं देखी पर अगर आप इसे राष्ट्रीय समाचार पत्र पत्रिकाओं में भेजें तो वह इसे अवश्य प्रकाशित करेंगे और वह पुस्तक केवल इसलिये लोकप्रियता अर्जित करेगी क्योंकि उस पर इतनी जोरदार समीक्षा लिखी गयी है।’
बाद में मैं उनके साथ ही एक कवि सम्मेलन में गया तो उनकी सस्वर गीत सुनकर इतना प्रभावित हुआ कि मैंने उनसे कहा-‘आप तो अच्छे लेखक और कवि हैं फिर भी कभी कहीं आपका नाम चर्चा में नहीं सुना।’

इसकी वजह उन्होने अपना आलस बताया-इस बात की चर्चा उन्होंने अपने ब्लाग पर प्रोफाइल में भी की हैं। उन्होंने अपने कुछ रचित गीत दिखाये तो मैंने कहा कि ताज्जुब है यह कभी रेडियो पर नहीं सुनाई देते। जबकि यह वाकई ऐसे गीत है जो अगर संगीत से जुड़ जायें तो कई लोगों की जुबान पर चढ़ जायेंगे।
बहरहाल उनकी हमारी मित्रता अब तक चलती रही है। उनसे प्रेरित होकर मैंने भी गीत और दोहे लिखकर उनको दिखाये। उन्होने मुझसे स्पष्ट कहा कि‘तुम्हारे कथ्य बहुत दमदार हैं पर यह गीत नहीं हैं। तुम छंदबद्ध लिखने की बजाय मुक्त कविता लिखा करो। सबसे अच्छा यह है कि गद्य लिखा करो क्योंकि जहां कथ्य की प्रधानता हो वहां उसका इस्तेमाल भी अच्छा है।’

उनसे इस चर्चा के बाद ही मैंने तय किया कि अब अपने लिखने में गद्य रचनाओं को ही प्रधानता दूंगा। मैंने उनको अपने कुछ गद्य रचनाएं प्रकाशन के लिये भेजने से पहले उनको दिखाये और उस पर उन्होंने अपना मंतव्य दिया। कुछ रचनाओं को उन्होंने ठीकठाक कहा तो कुछ पर वह भी भौंचक्क रह गये और वह मेरे चिंतन वाले आलेख हुआ करते थे। उन्होंने चिंतन को सराहा था इसलिये अपने प्रथम दो ब्लाग में पहले का नाम मैंने दीपक भारतदीप का चिंतन उनकी वजह से लिखा क्योंकि यह विचार मैंने उनसे ही लिया था। प्रसंगवश अंतर्जाल पर कुछ लेखकों को हाइकू लिखते देखकर मैंने वह लिखने का प्रयास किया था। उड़न तश्तरी ने भी लिखा‘आपकी कविता दमदार है पर वह हाइकू नहीं है।’

ऐसा झटका मुझे श्री ललित मोहन त्रिवेदी जी गीत और दोहे के विषय में दे चुके थे। मतलब यह इन दोनों महानुभावों की वजह से इन दोनों विधाओं पर मैं कभी लिखने वाला नहीं हूं। जब अंतर्जाल पर कवितायें लिखनी शुरू की तो मैं बड़े बेमन से लिख रहा था और इसकी चर्चा मैंने श्री त्रिवेदी जी से की तो उन्होंने कहा कि ‘आप तो अपने कथ्य के साथ आगे बढ़ते रहें। मैंने आपको गीत और दोहे के लिये टोका था पर मुक्त कविता तो आप लिखते रहिये। किसी भी रचना मुख्य विषय उसका कथ्य है। अगर आप व्याकरण की दृष्टि से बहुत अच्छी रचना लिखें पर अगर कथ्य प्रभावी न हो तो फिर क्या फायदा? उसी तरह अगर आप का कथ्य प्रभावपूर्ण है तो यह महत्वपूर्ण नहीं रह जाती कि आप विधा में लिख रहे है।
मैंने उनको बताया था कि गद्य इतने बड़े हो जाते हैं कि उनको अंतर्जाल पर पढ़ना कठिन है उपरोक्त संबंध में उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाते हुए यह बात कही। अभी तक वह अपने वेबसाइट/ब्लाग पर दो गीत लिख चुके हैं। हां, उनको अपने रचनायें चोरी होने की आशंका रहती है और मैंने तो उनसे कहा भी था कि ‘मैं तो अपनी रचनाओं की चोरी के लिये तरस रहा हूं पर आपको शायद इसके लिये अधिक प्रतीक्षा न करनी पड़े क्योंकि आप जिस तरह के गीत लिखते हैं उसकी चोरी की संभावना बहुत लगती है। एसी रचनाएं लिखना हर किसी के बूते का नहीं है।’

ऐसे में जब हिंदी ब्लाग जगत के लोग निरंतर उनकी रचनाओं को देखेंगे तो कहीं उसका उपयोग होने पर वह उनको बता सकते हैं। अक्सर मैं अपनी समीक्षा में लिखता हूं कि ‘लेखक के मित्रों को यह कम और आलोचकों को अधिक लगे तो खेद है‘, यह भाव श्री ललित मोहन त्रिवेदी जी की उसी समीक्षा को पढ़ने के परिणाम है। उन्होंने मुझसे कहा था कि किसी दूसरे साहित्यकार या लेखक की रचनाओं पर समीक्षा लिखने वाले ही पूर्ण साहित्यकार होते हैं। यही कारण है कि मैं भी यहां अंतर्जाल पर ब्लाग लेखकों पर समीक्षा लिखता हूं। मुझे यह स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है कि उन जैसी समीक्षा मैं तो नहीं लिख सकता।
श्री ललित मोहन त्रिवेदी जी न केवल लिखते अच्छा है बल्कि बातचीत में भी बहुत प्रभावित करते हैं। अपने जीवन में लिखा भले कम ही हो पर वार्तालाप में उनके जीवन के संस्मरण भी किसी रचना से कम नहीं होते। मैं जब सुनता हूं तो लगता है कि उनको पढ़ रहा हूं और वह दृश्यव्य भी हो रहे हैं।
उनका अंतर्जाल पर लिखना शूरू करना इसलिये बहुत अच्छा लगा क्योंकि वह अगर मुझे निरंतर लिखने को प्रेरित नहीं करते तो शायद मैं अंतर्जाल पर भी लिखने का विचार नहीं करता। मैं चाहूंगा कि वह अपने गीतों से अंतर्जाल पर हिंदी को रोशन करें। एक आखिर बात मैं हमेशा कहता हूं कि कोई लेखक कम या अधिक प्रसिद्ध होता है पर छोटा या बड़ा नहीं कहा जा सकता। गीता विधा में सिद्ध हस्त श्री ललित मोहन त्रिवेदी जी अधिक प्रसिद्ध नहीं हैं पर मेरा दावा है कि उन जैसे गीतकार उंगलियों पर गिनती करने लायक होंगे। जब मैं अंतर्जाल या बाहर कोई काव्य देखता हूं तो अक्सर उनकी तुलना त्रिवेदी जी की रचनाओं से करता हूं और कई मशहूर लेखकों की रचनायें भी उनके सामने कम स्तर की लगती हैं।

बस एक बात है कि उनको लिखने के लिये निरंतर प्रेरित करने की आवश्यकता है। यह काम मैं तो करूंगा ही अंतर्जाल के अन्य मित्रों और पाठकों से भी यह अपेक्षा करूंगा कि वह यह जिम्मा उठायें क्योंकि उनके गीत तथा अन्य रचनायें अंतर्जाल पर हिंदी की श्रीवृद्धि करेंगे यह मेरा विश्वास है। वह मेरे एक ऐसे मित्र है जो अनेक अवसरों पर न केवल सहयोग करते हैं बल्कि प्रेरित करते है। उनसे ही सीखकर उन्हें ही यह समीक्षा समर्पित करता हूं।
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दीपक भारतदीप


www.lmtrivedi.blogspot.com

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