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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/3/08

अपनी किस्मत भी गरीब नहीं होती-कविता


कुछ पल की खुशी भी
जिंदगी में नसीब नहीं होती
उसकी तलाश में भटके दर दर
मिलते हैं कई पल मुस्कराने के
खुश होते दिखाने के
पर जो दिल को छू जाये
वह तस्वीर कभी करीब नहीं होती

पसीने में नहाया अपना जस्म
मेहनत की लगी हो जैसे भस्म
देख उसे अपना ही जी भर आता है
कोई चाहत फिर भी पूरी नहीं होती
चाहे जमाने की खुशी कदमों में पड़ी हो
पर भी अपनी किस्मत जैसे रूठी लगती है
जिन चेहरों को देखकर दिल खुश होता है
उनकी करीबी नसीब नहीं होती

अपना रास्ता बदल कर कहीं
और चले जाने का मन करता है
पर हर राही अपनी मंजिल से
भटका लगता है
तब देखकर ख्याल आता है
सभी बेहाल हैं
अपनी हालातों से
अपनी ख्वाहिशों के बोझ तले
चले जा रहे हैं
चेहरे पर हंसी है
पर दिल में मलाल लिये जा रहे हैं
तब लगता है कि
कुछ चाहतें पूरी नहीं होती तो क्या
कुछ ख्वाहिशें जमीन पर नहीं उतरती तो क्या
कुछ तस्वीरें सच में नहीं सामने आती तो क्या
चलते हैं अपने पांव
हिलते हैं अपने हाथ
अपनी अक्ल हो जब साथ
तब अपनी किस्मत भी गरीब नहीं होती
.................................
दीपक भारतदीप

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