किसी देश के लोगों का मनोबल गिराना भी उसके शत्रु के लिये अपने आप में एक विजय से कम नहीं होता और लगता है कि भारत में आतंकी अपराध कराने/करने वाले देशों और अपराध समूहों का यह भी एक उद्देश्य है कि किसी भी तरह यहां के नागरिकों को आतंकित और तनावग्रस्त रखा जाये ताकि वह आर्थिक रूप से कितने भी विकसित हों पर मानसिक रूप से कष्ट में रहें।
पिछले दिनों हुई अनेक आतंकी घटनाओं के दौरान अपने ब्लाग/पत्रिकाओं में पाठकों की आमद देखकर तो इस लेखक को यही लगता है कि कहीं न कहीं भारत के विरोधी देश तथा अपराधी यहां के लोगों का ध्यान हिंसा की तरफ लगाये रखना चाहते हैं। जब जब यह आतंकी वारदातें हुईं तब अंतर्जाल पर ब्लाग/पत्रिकाओं पर अचानक ही पाठकों की संख्या कम हो गयी और पिछले दो दिन में तो एकदम 75 फीसदी पाठक कम हो गये। क्या इससे यह नहीं लगता कि हमारे देश के लोगों को कोई मानसिक रूप से त्रस्त करने के गिरोह या देश सक्रिय है। आतंकी घटनाओं के सैंकड़ों निर्दोष लोगों की मृत्यु या उनका घायल होने त्रासदी कोई कम नहीं है और देश के लोगों में निराशा,हताशा,चिंता और क्रोध की अग्नि से उनका रक्त सूखने के अलावा उनका दिमाग पर भी दुष्प्रभावित होता है।
इन आतंकी हमलों में जो युवक सीधे शामिल होते हैं उनकी औकात पैदल से अधिक नहीं होती और उनका मरना आतंक के अपराध की समाप्ति का प्रमाण नहीं माना जा सकता। मुख्य तो वह लोग हैं जो इसकी योजना बनाते हैं और उसके लिये धन एवं हथियार उपलब्ध भी कराते हैं। आतंकी मर गये पर वह लोग जिंदा हैं जो पर्दे के पीछे अपनी निर्माता और निदेशक की भूमिका निभाते हैं। इन लोगों का काम ही कि एक कांड में उनके युवक अपराध करते हुए मारे जायें फिर फिर दूसरे युवक तलाश करेंे और फिर कहीं अन्यत्र आतंक का अपराध कराने की योजना बनाये। एक बात तय है कि इस तरह के अपराध से सीधे किसी को कुछ नहीं मिला पर अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी ने अपना उद्देश्य पूरा किया जिसमें शायद यह भी एक रहा होगा कि किसी भी तरह इस देश के शासन और नागरिकों का ध्यान इस तरफ जाये और वह मानसिक तनाव का सामना करें।
ऐसी घटनाओं का देश के प्रशासन और नागरिकों पर गहरा प्रभाव होता है और शायद यह भी शत्रुओं का एक उद्देश्य है। जरा देखिये सभी समाचार चैनलों पर जो तीन पहले तक एक घंटे में केवल 10 मिनट समाचारों को देते थे और उनका बाकी समय हास्य कार्यक्रम,क्रिकेट और फिल्म के मनोरंजन कार्यक्रमों को दे रहे थे उन्होंने पिछले साठ घंटे से केवल इसी पर ही ध्यान केंद्रित किये हुये हैं। उनके पूरे फुटेज इसी घटना के प्रसारण पर खर्च किये गये हैं। ऐसे समय में दर्शक भी अन्य कार्यक्रम छोड़कर यही सब देख रहे हैं। ऐसे लोग भी जो शायद अपना समय टीवी चैनलों से अलग होकर अन्य जगह लगाते हैं-जैसे अखबार पढ़ना या अंतर्जाल पर सक्रिय रहना-वह भी इसी तरफ अपना ध्यान लगाये रहे। लोगों के अंदर व्यग्रता और तनाव होना स्वाभाविक है। पाठक क्या लेखक तक अपना मनोबल खो बैठते हैं। एक तरफ पर्दे पर गोलियों की आवाज कानों में गूंज रही हो और दूसरी तरफ निदौष लोगों तथा आतंकियों से जूझ रहे पुलिस/सैन्य बलों के अधिकारयों और जवानों की लाशों के दृश्य तब भला कौन अपने मन पर नियंत्रण रख सकता है। उदासी और चिंता से मस्तिष्क इतना आहत होता है कि कुछ लिखने या पढ़ने का मन ही नहीं होता। नागरिक हो या जवान उनकी मौत राष्ट्र के लिये बहुत बड़ा नुक्सान होता है और बहिर्मुखी पाठक/लेखक तो क्या अंतर्मुखी व्यक्ति भी अपने अंदर व्यथा के प्रवेश को अवरुद्ध नहीं कर पाता।
वैसे तो क्रिकेट मैच के दिन पाठकों की संख्या कम होती दिखती थी। इसके अलावा कभी कभी किसी शहर में आतंकी घटना होती थी तब भी अचानक ही संख्या कम हो जाती थी पर अब तो तीन दिन से ऐसा लग रहा है कि पूरा देश स्तब्ध होकर खड़ा है। देश का क्या कहना पूरा विश्व ही स्तब्ध है क्योंकि यह कोई मामली घटना नहीं है। एक तरह से हमला है और ऐसे में पूरी दुनियां के लिये चिंता का विषय होना स्वाभाविक है।
अंतर्जाल पर सक्रिय लोग अपने ब्लाग/वेबसाइटों के पाठकों की संख्या का निरंतर अवलोकन करते हैं और यह लेखक तो सांख्यिकी का विद्यार्थी रहा है और पाठक संख्या के उतार चढ़ाव में वह सब तत्व देखने का प्रयास करता है जो उनको प्रभावित करते हैं। 27 नवंबर से 29 नवंबर का कुल साठ घंटे के समय ब्लाग/पत्रिकाओं को अवलोकन करने से यह पता लगता है कि निर्दोष नागरिकों और पुलिस@सेना के जवानों-अधिकारियों की मौत से तो भारी हानि होने के अलावा पूरे देश के लोगों को जो मानसिक संताप हुआ है उसका आंकलन भी किया जाना चाहिये क्योंकि देश के शत्रुओं का यह भी एक उद्देश्य हो सकता है।
अंतर्जाल पर सक्रिय ब्लाग लेखकों के अनेक पाठों पर आतंकी घटनाओं पर गुस्सा,निराशा,व्यग्रता और चिंता से भरे शब्द लिखे हुए थे। अनेक सक्रिय टिप्पणीकारों ने भी इसी प्रकार के भावों से अपनी टिप्पणियां लिखीं थीं पर ऐसा लगता था कि अंतर्जाल पर सक्रिय भारतीय समुदाय के लोगों की संख्या सीमित रह गयी थी। जो सक्रिय भी थे तो उनका ध्यान केवल आतंकी घटना पर ही केंद्रित था-वह भी कोई उत्साह से नहीं बल्कि निराशा और गुस्से के भाव से। दोनों स्थिति में आदमी की शरीर और मन में सक्रियता तो रहती है पर गति मंद हो जाती है और यही कारण है कि आंख टीवी पर हो या हाथ कंप्यूटर पर रखे हों दिमाग की चिंतन क्षमता कम होती लगती है। विचार इधर से उधर भटकते हैं। सोचे या लिखें शब्द कई बार रास्ता बदलते नजर आते है। कुल मिलाकर अच्छा खास आदमी अन्मयस्क हो जाता है।
वैसे टीवी चैनलों पर दर्शक संख्या बढ़ी पर अंतर्जाल पर पाठक कम हो गये। इससे तो यही लगता है कि कहीं न कहीं दोनों ही माध्यमों में प्रतिस्पर्धा है। शायद यही कारण है कि सामान्य स्थिति में समाचार चैनल अपने कार्यक्रम में हास्य,क्रिकेट और फिल्म के विषय जोड़ते हैं ताकि उनकी टीआरपी रेटिंग बनी रहे। आतंकी घटनाओं के दौरान उनकी तरफ लोग अधिक चले जाते हैं तो ब्लाग की संख्या कम हो जाती है। इसके अलावा लोग अखबारों में अधिक रुचि लेने लगते हैं। इससे एक बात तो लगती है कि अंतर्जाल को कई बार इन माध्यमों से पीछे रहना पड़ेगा क्योंकि लोग पहले कंप्यूटर फिर इंटरनेट खोलकर देखने की बजाय सामान्य आदमी को टीवी चैनल खोलना और अखबार पढ़ना अधिक सहज लगता है। हां, जब ब्लाग पर इन दोनों माध्यमों से अलग हटकर लिखने की बात प्रचारित होगी तब ही शायद इंटरनेट की तरफ आयेंगे।
यहां इस बात का उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि अनेक ब्लाग लेखकों ने वैचारिक स्तर पर बहुत अच्छा और प्रभावपूर्ण लिखा-अनेक अखबारों और टीवी चैनलों को देखने के बाद यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है। ब्लाग लेखकों ने अनेक सवाल उठाये जो कहीं नहीं उठाये गये। उन्होंने ऐसे निष्कर्ष भी रखे जो कहीं पढ़ने या सुनने में नहीं आये। गुस्से और निराशा में आम आदमी की अभिव्यक्ति हिंदी ब्लाग पर दिखाई दी। जब किसी हादसे से उपजा तनाव और गुस्सा दिमाग में हो तब ऐसी अभिव्यक्ति दे पाना सभी की क्षमता में नहीं होता। आखिर जब अपनी आखों से अपने देश की हानि देखते हैं तब कैसे मानसिक रूप से विचलित नहीं हो सकते। कम से कम अंतर्जाल पर सक्रिय ब्लाग लेखकों और पाठकों की आमद में कमी देखकर तो यही लगता है कि इससे पूरे देश में मानसिक संताप और तनाव रहा है।
वाकई यह समय बहुत तकलीफदेह रहा। जो हानि हुई है वह अपूरणीय है। इसके बावजूद भी देश के लोगों को अब अपना मनोबल बनाये रखने होगा क्योंकि अगर विज्ञान की वजह से जहां लक्ष्य तक पहुंचने में कम समय लगने और सहजता से वार्तालाप करने की जो सुविधा उपलब्ध हुई उसका कुछ लोग दुरुपयोग भी करते हैं। फिर पड़ौसी देशों का हमारे देश के प्रति जो शत्रुतापूर्ण रवैया है उससे देखते हुए तो यह कहा जा सकता है कि ऐसे हमलों ने विचलित होना ठीक नहीं है। इस हादसे में मारे गये निर्दोष लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए हृदय विचलित हो जाता है वहीं आतंकियों को परास्त करते हुए शहीद हुए जवानों और अधिकारियों को नमन करने लगता है। इस हादसे के बावजूद अपना मनोबल बनाये रखना ही शत्रुओं को सही जवाब देना है क्योंकि वह उसे तोड़ने के लिये ही यह सब कर रहे हैं।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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5 years ago
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