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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/15/09

लोकसभा चुनाव 2009 के परिणामों में लोगों की दिलचस्पी-आलेख

कई लोग आज सोयेंगे नहीं और उनकी राते जागते हुए कटेंगी। सुबह घड़ी की सुईयां सात बजे ही उनके दिल की घड़कने तेज हो जायेंगी। भारतीय लोकतंत्र के लिये कल एक महान दिन रहने वाला है। मतदान महायज्ञ की कल एक तरह से पूर्णाहूति का समय होगा।
हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों के परिणाम कल मिल जायेंगे। उससे पहले टीवी चैनलों पर रुझानों का प्रदर्शन होगा और हमेशा की तरह उसे इतने टीवी दर्शक मिलेंगे जो पांच साल में एक ही बार मिलते हैं।
जब टीवी नहीं था तब लोग रेडियो से चिपक कर बैठ जाते थे। उस समय मशीन से चुनाव नहीं होते थे और कई बड़े चुनाव क्षेत्रों में तो दो दिन तक गिनती चलती थी। अब तो मशीनों से सब आसान कर दिया है।
ऐसा नहीं है कि केवल चुनावी राजनीति में सक्रिय लोग ही इन परिणामों में दिलचस्पी लेते हैं बल्कि देश का एक बहुत बड़ा तबका जो किसी दल विशेष में दिलचस्पी नहीं रखता वह भी चुनाव परिणामों को सुनने के लिये लालाचित रहता हैं।
चुनावों की अगर क्रिकेट से तुलना करें तो यकीनन उसके परिणाम क्रिकेट से अधिक दर्शक जुटाते हैं। क्रिकेट तो केवल शहरी और पढ़े लिखे तबके तक ही सीमित है पर चुनाव परिणामों पर पूरे देश के हर गांव में नजर रखी जायेगी। इस देश में एक बहुत बड़ा तबका है जो राजनीति में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय नहीं होता पर उसकी दिलचस्पी उसके समाचारों में रहती है और वह आपस में बहस करता है-इसमंें अमीर, गरीब, शिक्षित,अशिक्षित, शहरी और ग्रामीण-हर वर्ग का आदमी शामिल है। यह केवल एक भ्रम है कि गरीब अशिक्षित लोग चुनाव में दिलचस्पी नहीं लेते। जिन लोगों ने आजादी के बाद जन्म लिया है उन्होंने देखा होगा कि किस तरह गांवों में चैपालों और शहरों में चैराहों पर लोग राजनीतिक विषयों पर बहस करते हैं। विलासिता से जीवन व्यतीत करने वाला शहरी हो या मेहनत से संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाला ग्रामीण हो जिनकी दिलचस्पी चुनावों में है वह परिणामों का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं।
हां, एक मजेदार बात यह है कि इनमें चुनाव परिणाम और राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले कुछ लोग ऐसे हैं जो एकदम दृष्टा बन जाते हैं और अपन मत देने मतदान केंद्र परजायें यह जरूरी नहीं है जबकि ऐसे लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वह मतदान अवश्य करें। वह मत देने वाले मतदाता और चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को एक तरह से पर्दे पर पात्र की तरह देखते हुए अपनी भूमिका एक दर्शक तक ही सीमित रख देते हैं।
देश में कई जगह मतदान का कम प्रतिशत होना चिंताजनक है। अगर देखा जाये तो देश में राजनीतिक जागरुकता उससे अधिक है जितना मतदान होता है। कुछ बुद्धिमान और विद्वान लोग चर्चा करने तक ही अपना प्रदर्शन सीमित रखते हैं और मतदान करने की बात आये तो यही सोचते हैं कि ‘इतने सारे लोग हैं एक हमारा मत क्या कर लेगा?’ यह सोच उनकी संकीर्णता का परिचायक है।
भारत दुनियां का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और कल चुनाव परिणाम उसमें एक नया अध्याय जोड़ेंगे। एक सामान्य मतदाता की मतदान करने के बाद केवल चुनाव परिणाम में ही दिलचस्पी रह जाती है। केवल अपने क्षेत्र तक ही नहीं वरन् देश और प्रदेश के चुनाव परिणामों पर वह दृष्टि रखता है। राजनीतिक दलों के समर्थक अपने दलों के परिणामों के अनुसार अपनी प्रतिक्रिया देते हैं पर जो निष्पक्ष, स्वतंत्र और तथा किसी दल के समर्थक या विरोधी नहीं हैं उनकी सोच इतिहास को अपने सामने बनते देखने की होती है। ऐसे लोग टीवी और रेडियो से समाचार और विश्लेषण सुनने के बाद समाचार पत्रों की खबरों को पढ़ना भी नहीं भूलते।
हिंदी ब्लाग जगत के लिये यह एक तरह से पहला ऐसा लोकसभा चुनाव था जब कुछ लिखा गया। अनेक ब्लाग लेखकों ने अपने समर्थन और विरोध के विषयों के साथ अनेक पाठ लिखे। चुनावों के पूर्वानुमान प्रस्तुत किये। कड़ी बहसें होती दिखीं। वैसे हिंदी ब्लाग जगत चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं था पर ब्लाग लेखकों बहसों को देखते हुए ऐसा लगता था कि वह ऐसा करेंगे। हिंदी ब्लाग जगत किसी दल विशेष का समर्थन या विरोध का प्रचार अधिक पाठकों तक नहीं पहुंचा सका पर भविष्य में इसकी संभावना लगती है कि वह अपने उद्देश्य में सफल होंगे-जिन्होंने ऐसा करने का अपना लक्ष्य तय कर रखा है।
जिन लोगों की चुनाव से जुड़े राजनीतिक विषय पर लिखने की अधिक दिलचस्पी नहीं है वह भी इन ब्लाग लेखकों के पाठ पढ़ते रहे। बहरहाल कल एक दिलचस्प और एतिहासिक दिन है और इसका आनंद उठाने में चूकना नहीं चाहिए।
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