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7/28/09

श्री गुरु ग्रंथ साहिब-नासमझ से मित्रता अधिक नहीं चलती (shri guru granth sahib)

मनसुख सेती दोस्ती थोडड़िआ दिन चारि।
इसु परीति तुटंदी विलमु न होवई,
इतु दोस्ती चलनि विकार।
हिंदी में भावार्थ-
नासमझी और स्वार्थ से हुई मित्रता अधिक दिन नहीं चलता। उसके टूटने में विलंब नहीं होता। ऐसी मित्रता से प्रतिदिन नये विकार पैदा होते हैं।
दुस्टा नालि दोस्ती संता वैरु करंनि।
आपि डूबू कुटंब सिउ सगले कुल डोबंनि।।
हिंदी में भावार्थ-
दुष्ट व्यक्ति से मित्रता करना अपने लिये बैर स्थापित करना है। दुष्ट व्यक्ति स्वयं तो अपने कुटुंब समेत डूबता है मित्र और उसके परिवार के नाश का कारण बनता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-
सांसरिक मित्रता हमेशा स्वार्थ की वजह से होती है पर अगर मित्र नासमझ हुआ तो एक तरह से बैर की तरह आस्तीन में पलता है। ऐसा नहीं है कि इस संसार में सभी लोग मित्र नहीं बन सकते पर निस्वार्थी और ज्ञानी मित्र ऐसे होते हैं जो विपत्ति में सहायक बनते हैं। उनकी संख्या नगण्य है, अधिकतर तो मित्र केवल स्वार्थ की वजह से मित्र बनते हैं। शराब, जुआ, सट्टा या अपराध करने के लिये मित्र बहुत जल्दी मिल जाते हैं। एक बात कही भी जाती है कि बुरे लोगों का समूह बहुत जल्दी बनता है जबकि सज्जन लोग कभी समूह नहीं बनाते। साधु कभी समूह बनाकर नहीं चलते।
किसी को अपना मित्र बनाने से पहले उसका नैतिक आचरण देख लेना चाहिये। देखा तो यह गया है कि ठगी, धोखा या अन्य संकट का सामना मनुष्य को अपने ही लोगों के कारण करना पड़ता है। महिलाओं के विरुद्ध अभद्र व्यवहार की शिकायत उनके अपने जान पहचान और रिश्तेदारों के कारण ही अधिक होती है। बहुत कम ऐसे अपराध है जिनमें गैर का शामिल होना पाया जाता है। इसलिये स्त्री हो या पुरुष उसे किसी अन्य से संपर्क बढ़ाने के साथ मित्रता तभी कायम करना चाहिये जब उसके आचरण को पहले प्रमाणित कर ले।
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