इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत अंतरिक्ष के रूप में एक महत्वपूर्ण शक्ति बन गया है और इससे उसकी सैन्य शक्ति का अंदाज भी लगाया जा सकता है। अनेक लोग सोचते होंगे कि अंतरिक्ष शक्ति का सैन्य शक्ति से क्या संबंध है तो उन्हें यह समझना चाहिये कि अंतरिक्ष की ताकत ही आजकल किसी भी देश की शक्ति की पहचान है। पहले युद्धों में पैदल सेना और फिर वायुसेना के द्वारा सफलतायें प्राप्त की जाती थीं पर आजकल बिना अंतरिक्ष क्षमता के यह संभव नहीं है। इधर इसरो दूसरा चंद्रयान-2 की तैयारी कर रहा है। इतना ही इसरो दूसरे देशों को भी अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने में मदद कर रहा है। भारत के पास चीन से इस विषय में बढ़त प्राप्त है क्योंकि चीन अभी भी अपना चंद्रयान नहीं भेज पाया है। वैसे भारत का चंद्रयान अवधि से पूरी किये बिना ही अपना अस्तित्व गंवा बैठा पर ऐसे अभियानों में ऐसे विफलता कोई बड़ी चिंता की बात नहीं होती। वैसे भी उसने 95 प्रतिशत काम पूरा कर लिया था। इसी अभियान से विश्व को यह पता लगा कि चंद्रमा पर पानी है।
कहते हैं न कि घर की मुर्गी दाल बराबर-कुछ यही स्थिति हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की अपने देशवासियों के लिये है। आमतौर से हम लोग चीन और पाकिस्तान की सैन्य शक्ति को लेकर चिंतित रहते हैं पर उस समय केवल जल, थल और नभ की शक्ति पर विचार करते हैं। जल, थल और वायु की शक्ति महत्वपूर्ण है पर अंतरिक्ष शक्ति के आगे फीकी लगती हैं। हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की वजह से ही आज हमें महाशक्ति माना जाता है न कि पंरपरागत सैन्य उपलब्धियों से कोई यह सम्मान मिल रहा है।
अभी पिछले दिनों चीनी सेना की घुसपैठ की खबरें आयी थी जिसमें एक चैनल ने बताया कि चीनी सैनिक अपने देश का नाम भारतीय सीमा में दो किलोमीटर तक घुसकर कुछ पत्थरों पर लिखकर चले गये इस कथित समाचार पर एक भारी चिंता व्यक्त की गयी। हालांकि यह खबर प्रमाणित नहीं हुई पर इससे एक बात तो लगती है कि इस देश का बौद्धिक वर्ग के कुछ लोग कितने संकीर्ण ढंग से सोचते हैं।
सच तो यह है कि अब वह समय गया जब कोई सेना कहीं पहुंच गयी तो वहां से बिना लड़े हटती नहीं थी। अब विश्व समाज में एक अघोषित आचार संहिता तो बन गयी है कि किसी भी देश का स्वरूप इतनी आसानी से नहीं बदला जा सकता।
अगर प्रसंग चीन का आया तो पता नहीं आशियान देशों में भारत और चीन के संबंध क्यों भुला दिये जाते हैं? बहुत पहले अखबारों में एक खबर पड़ी थी कि आशियान देशों के घोषणा पत्र में भारत और चीन ने भी हस्ताक्षर किये गये जिसमें सदस्य देशों की वर्तमान सीमाओं में बदलाव को स्वीकार न करने की बात कही गयी थी। पता नहीं बाद में इस पर कोई जानकारी नहीं आई जबकि उसके बाद पाकिस्तान भारत पर आरोप लगाता रहा है कि भारत उसे आशियान का सदस्य नहीं बनने दे रहा है। आशियान ग्रुप में भारत और चीन के साथ सोवियत संघ भी है और पश्चिमी देश उसकी गतिविधियों को बहुत सतर्कता से देखते हैं। वहां चीन भारत के साथ अपने संबंध बेहतर रखता है जिसकी वजह उसकी आर्थिक और राजनीतिक बाध्यताऐं भी हो सकती हैं। यह संबंध ऐसे हैं कि भारत की इच्छा के विरुद्ध पाकिस्तान को उसमें शामिल करने की चीन ने कभी पहल नहीं की।
अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से दुश्मनी लेकर आज कोई भी देश चैन से नहीं बैठ सकता चाहे वह चीन ही क्यों न हो? कुछ अखबारों में 1962 के भारत-चीन युद्ध का इतिहास भी हमने पढ़ा है जिसमें बताया गया कि चीन अंदर तक घुस आया था पर अमेरिकी दबाव में वह बहुत पीछे हट गया था हालांकि तब भी वह एक बहुत बड़े इलाके पर काबिज रहा। इसका आशय यह है कि कहीं न कहीं चीन भी अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे घुटने टेक सकता है। आज की परिस्थिति में वह एक भी इंच जमीन पर अपना कब्जा नहीं जमा सकता। इसका कारण यह है कि जल, थल, और नभ क्षेत्र में भारतीय सेना चीन से कमतर मानी जाती है पर इतनी नहीं कि चीन उसे रसगुल्ले की तरह खा जाये। वियतनाम में पिट चुका चीन अब इतना साहस नहीं कर सकता कि भारत पर हमला करे। उस युद्ध में चीन की विश्व बिरादरी में बहुत किरकिरी हुई थी। फिर अपने अंतरिक्ष विज्ञान के कारण भारत उसके लिये कोई आसान लक्ष्य नहीं रह गया जिसकी बदौलत भारत विश्व में अपने मित्र बना रहा है।
इस अंतरिक्ष क्षमता की वजह से अमेरिका हमेशा विजेता बनता रहा है यह अलग बात है कि अपनी रणनीतिक गलतियों से जमीनी लड़ाई में फंस जाता है। चीन को पता है कि ऐसी गलतियां किसी भी देश की ताकत कम देती हैं। चीन न केवल अंतरिक्ष विज्ञान में भारत से पीछे हैं बल्कि कंप्यूटर साफ्टवेयर में भी उसकी भारत पर निर्भरता है। हमारे देश के प्रतिभाशाली युवाओं का माद्दा सभी मानते हैं। अपनी जनता में अपनी छबि बनाये रखने के लिये चीन के प्रचार माध्यम भले ही भारत की बुराई करते हैं पर भारत की ताकत को कमतर आंकन की गलती वहां के रणनीतिकार कभी नहीं करेंगे।
इसका सारा श्रेय भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को तो जाता ही है साथ ही निजी क्षेत्र के साफ्टवेयर इंजीनियों को भी इसके लिये प्रशंसा करना चाहिये जिन्होंने पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा लिया है। इस अवसर पर इसरो के वैज्ञानिकों को हार्दिक बधाई और चंद्रयान-2 के भविष्य में सफल प्रक्षेपण के लिये शुभकामनायें।
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