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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

1/13/10

ख्वाबों में दुनियां हिला रहे हैं-हिंदी शायरी (khabon ki duniya-hindi shayri)

लिखें  हैं कुछ शब्द

उससे ज्यादा चिल्ला रहे हैं,

जिनका अर्थ खुद नहीं समझा

अपने ख्वाबों को हकीकत की तरह

जमाने को दिखला रहे हैं


अब तक वह यही नहीं समझे कि

शब्द छूते हैं इंसान के दिल को

कोई चीख कर दिल नहीं दहलाते

जो  अपने शब्द से ज़माने में

बदलाव के दावे जताते

ख्वाबों में दुनियां हिला रहे हैं



संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anantraj.blogspot.com
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1 comment:

निर्मला कपिला said...

बिलकुल सही बात है बहुत खूब आभार्

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