आंगन में सांपों की
आपसी ज़ंग देखकर
हम खामोश रहे।
हमें मालुम था कुछ देर बाद
दोनों ही थक कर चले जायेंगे
या आपस में लड़ते मुर्दे का रूप पायेंगे
अब समझ में आया कि
इतिहास की ज़ंगों में
आम इंसान तटस्थ क्यों रहे।
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एक मुकुट पहनेगा तभी
जब दूसरा सिंहासन से हटेगा।
इतिहास गवाह है कि
हुक्म करने की जंग में
जमाने का भला करने का दावा
हमेशा धोखा रहा है
आम इंसान के सामने खड़ा रहेगा
हमेशा तलवार का खौफ
लड़ा तो कोई ताज नहीं मिलेगा,
मरा तो कहीं नाम नहीं दिखेगा,
तटस्थ रहकर जान बचा ले आम इंसान
यही है बेहतर
जीत का फल
केवल इज्जतदारों में बंटेगा।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
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4 years ago
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