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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

1/1/10

अंतर्जाल पर यौन सामग्री रोकने का प्रयास-हिन्दी आलेख (sex image search on internet in google and yahoo-hindi article)

अगर इन खबरों पर यकीन करें कि गूगल ओर याहू ने अपने सर्च इंजिनों भारतीय क्षेत्र क अंतर्गत ‘यौन सामग्री’ की खोज को बंद करने या सावधानी पूर्वक प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है तो यह कहना पड़ेगा कि इससे निकट भविष्य में इंटरनेट की गतिविधियों में अल्पकाल के लिये कमी आ सकती है और कंपनियों द्वारा प्रदत्त कनेक्शन कम हो सकते हैं। बाद में समय के साथ फिर बढ़ोतरी होगी, यह एक अलग से बहस का विषय हो सकता है।
अगर हम भारत के इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या देखें तो टेलीफोन कंपनियों को बहुत बड़ा बाजार मिला हुआ है। सात से दस करोड़ इंटरनेट कनेक्शनधारियों के होने की बात अक्सर कही जाती है। आंकड़ों के खेल की बजाय हम जमीनी सच्चाई को देखें तो पता लगता है कि अधिकतर लोगों ने टीवी के विकल्प के रूप में इसे चुना है। शैक्षणिक, साहित्यक, कलात्मक तथा अन्य रचानात्मक विषयों के प्रति केवल उन्हीं लोगों का रुझान है जो उनसे स्वयं जुड़े हुए है। कम से कम इंटरनेट विशेषज्ञ तो यही मानते हैं कि भारतीय अंतार्जल प्रयोक्ता यौन से संबंधित सामग्री में अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं।
गत वर्ष एक प्रतिबंधित हिन्दी वेबसाईट ‘सविता भाभी’ के बारे में बताया गया कि उसके नियमित प्रयोक्ता बीस हजार तक पहुंच गये थे। अलेक्सा की रैकिंग में उसे एक बेहतर स्थान प्राप्त था। स्पष्टतः वह यौन सामग्री से भरी हुई थी और इसलिये कथित सामाजिक चिंतकों ने उस पर रोक लगाने की मंाग की। उस पर प्रतिबंध लगने से अनेक लोग निराश हुए और अभी तक उसकी तलाश सर्च इंजिनों में हो रही है-यह बात इस लेखक के कम से कम चार ब्लाग पर इस विषय पर लिखे गये लेख, व्यंगय तथा कविताओं की पाठकों की संख्या देखकर लगी है। लेखक ने यह सामग्री प्रयोग के लिये ही लिखी थी और उसके परिणामों ने यह बता दिया कि लोगों की दिलचस्पी किस विषय में’ है-यह अलग बात है कि एैसी वैसी सामग्री न मिलने ने पाठक निराश होकर कोई अन्य सामग्री देखे बिना लौट जाते हैं जबकि कुछ अन्य विषयों में भी दिलचस्पी लेते हैं। कई लोगों ने तो अपनी टिप्पणियों में लिखा है कि अन्य विषयों पर हिन्दी में लिखा जा रहा है इस पर यकीन नहीं होता था।
कहने का तात्पर्य यही कि अन्य विषयों के बारे में हर आम प्रयोक्ता इतना नहीं जानता इसलिये अधिकतर यौन सामग्री देखने के लिये ही अंतर्जाल पर सक्रिय होते हैं। ऐसे में अगर उन्हें यह पता लगेगा कि अब तो यह सामग्री मिल नहीं रही या मुश्किल से मिलेगी तो वह संभवतः अंतर्जाल से विरक्त भी हो सकते हैं इसका प्रभाव टेलीफोन कंपनियों के व्यापार पर पड़ सकता है। बताया तो यह जा रहा है कि ऐसा सरकारी प्रयासों के कारण हुआ है कि याहू तथा गूगल ने भारत में यौन सामग्रंी दिखाना बंद करने या उसे कठिनता से दिखने के लिये तैयार हुईं। इस पर यकीन करना थोड़ा कठिन है। संभव है कि सरकारी प्रयास हुए हों पर बाजार और प्रचार प्रबंधकों की इसके पीछे कोई भूमिका जरूर है। इसके कारण हैं। भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की संख्या बहुत तेजी से बड़ी है और इससे अन्य प्रचार माध्यमो पर प्रत्यक्ष अंतर नहीं पड़ा पर अप्रत्यख रूप वही अपने प्रयोक्ता खो रहे हैं। टीवी चैनलों और समाचार पत्र पत्रिकाओं में यौन सामग्री प्रस्तुत करने की सीमायें हैं-हालांकि सभी उसे तोड़ने पर आमादा भी दिखते है। वह संगठित हैं, यह बात जहां उनको शक्ति प्रदान करती है वहीं मर्यादित रहने के लिये बाध्य भी करती है। भले ही न रखें पर समाज के लिये अपनी प्रतिबद्धता उनको दिखानी तो पड़ती है। इसके विपरीत अंतर्जाल पर खुला खेल है। चाहे जो जैसी सामग्री प्रस्तुत कर सकता है। संगठित सीमाओं से परे वैयक्तिक आधार पर काम करने वालों ने वह सब किया है जो उनको स्वतंत्र प्रमाणित करता है। यहीं से बाजार के सहारे टिके संगठित प्रचार माध्यामों की परेशानी प्रारंभ होती है। इसी कारण वह चाहते हैं कि ऐसी सामग्री वहां न मिले जिससे उनके प्रयोक्ता कम हो। टीवी चैनल, समाचार पत्र पत्रिकाओं के साथ टेलीफोन कंपनियां भी इसी संगठित प्रचार माध्यम का हिस्सा हैं। इंटरनेट पर अधिक सक्रिय लोग बाजार के लिये भी संकट का विषय हैं क्योंकि वह उसके अनेक उत्पादों को त्याग रहे हैं-जैसे त्यौहारों के अवसर अब लोग ईमेल पर ही अधिक संदेश भेज रहे हैं जिससे उनके ग्रीटिंग कार्ड वगैरह कम बिकते होंगे। एस. एम. एस. संदेश भी कम ही प्रयोग होते होंगे। उल्लेखनीय है कि टीवी तथा रेडियो में अनेक ऐसे कार्यक्रम हैं जो टेलीफोन कपंनियों को एस. एम. एस के प्रयोक्ताओं से अच्छी आय दिलवाते हैं और संभव है कि इंटरनेट प्रयोक्ताओं द्वारा प्रदाय की जा रही राशि खोने का ख्याल उनको न हो इसलिये ही वह भी चाहती हों कि अगर ऐसी यौन सामग्री बंद होने से टीवी और रेडियो के प्रयोक्तओं के कम होने से जो परेशानी बाजार तथा प्रचार माध्यमों को हो रही है उससे निजात मिले।
लोकप्रियता का दावा अनेक चैनल कर रहे हैं पर उनके कार्यक्रमों का स्तर देखा जाये ता लगता नहीं है कि इस समय आम प्रयोक्ता उनके होने या न होने के बारे में सोचता है, फिर इंधर इंटरनेट ने उनसे कितने दर्शक और श्रोता छीने हैं इसका अनुमान किसी को नहीं है अलबत्ता एक बात तय है कि बाजार और प्रचार प्रबंधक कही न कहीं परंपरागत संगठित प्रचार माध्यमों को इस इंटरनेट से चुनौती अनुभव तो करते ही हैं बल्कि वहां स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अनियंत्रित होने का भय भी उनके व्याप्त हो सकता है।
कुछ दिन पहले चीन में भी यौन सामग्री प्रतिबंधित की गयी थी। अगर कोई सोचता है कि उन्होंने अपने समाज की युवा पीढ़ी का दिगभ्रमित होने से बचाने के लिये किया है तो यह भ्रम है। वहां भी ऐसी ही पूंजीवादी ताकतें हैं जिनको सरकार से प्रत्यक्ष सहारा मिलता है। यह समाज के आचरण और चरित्र निर्माण के लिये प्रतिबद्धता भले ही पूरे विश्व में दिखाती हैं पर उनके कार्यक्रम भी जिस तरह उपभोग संस्कृति को प्रोत्साहित करती हैं उससे उनका ढोंग प्रकट भी हो जाता है। समाज की रक्षा की आड़ में सरकारों को प्रेरित कर वह अपने प्रयोक्ताओं को अपने कब्जे में रखना चाहती हैं।
हमारा उद्देश्य यौन सामग्री का प्रोत्साहित करना नहीं है पर नयी पीढ़ी को बरबाद होने से बचाने के नाम पर इस तरह के प्रयासों पर विचार करना जरूरी यूं भी लगता है कि संगठित बाजार और प्रचार माध्यम इस आड़ में अपने लक्ष्य समाज कल्याण के नाम पर ही प्राप्त करते हैं।
केवल सैक्स शब्द पर प्रतिबंध से भी क्या होगा। कुछ लोगों ने बताया कि इन वेबसाईटों से in शब्द हटाकर देखा जाये तो वह यौन सामग्री दिखाती है-याद रहे in शब्द से ही वह अपने सर्वर के माध्यम से भारतीय क्षेत्र को नियंत्रित करती हैं। इसका मतलब यह है कि अन्य देशों में उस पर रोक नहीं है दूसरा यह कि अगर इन को हटाकर यहां के लोग भी देख सकते हैं। ऐसे में भारत और चीन के प्रयासों पर पानी फिर सकता है। न भी फिरे तो सवाल यह आता है कि इन दोनों देशों में ऐसा क्यों हो रहा है। शायद इसलिये कि यह दोनों देश विश्व की बड़ी कंपनियों के बड़े बाजार है। यहां सारे संगठित प्रचार माध्यम उन्हीं के सहारे हैं ऐसे में उनको अपने प्रयोक्ता बचाने हैं तो बाजार को भी उपभोक्ताओं को वस्तुऐं बेचनी हैं। इसलिये कभी कभी तो लगता है कि इन बड़ी वेबसाईटों ने सरकार से अधिक बाजार और प्रचार प्रबंधकों के अनुरोध पर ऐसा किया हेागा।
इस पर उनको कितनी सफलता मिलेगी यह कहना कठिन है क्योंकि सैक्स के अलावा अन्य भी बहुत सारे शब्द हैं जो ऐसी यौन सामग्री उपलब्ध कराते हैं। फिर यू ट्यूब पर अनेक ऐसे फोटो उपलब्ध हैं जिनके साथ सैक्स या सैक्सी के अलावा अन्य टैग और लेबल हैं जो सीधी यौन सामग्री उपलब्ध कराते है। अब यह कहना कठिन है कि केवल सैक्स शब्द पर इस तरह रोक लगाने का प्रयास हो रहा है या हर प्रकार की यौन सामग्री रोकने प्रयास होगा-हालांकि यह एक कठिन काम है। एक बात तय रही है कि सैक्स या यौन सामग्री रोकने से यह आशा कतई नहीं करना चाहिए कि इससे इंटरनेट पर अन्य विषयों के प्रति रुझान बढ़ेगा क्योंकि इस तरह के प्रयोक्ता अन्य विषयों में न के बराबर रुचि रखते हैं इसलिये इंटरनेट कनैकशनों की संख्या कम हो सकती है पर यह दौर हमेशा नहीं रहेगा। बहरहाल अंतर्जाल पर नियंत्रण करने का प्रयास यही बताता है कि इसकी अब अनदेखी नहीं की जा सकती।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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