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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

2/12/10

ॐ नमो शिवाय:-आज महाशिवरात्रि है (om namo shivay-today mahashivratri)

‘ किं कारण ब्रह्म’
प्रश्न पूछा गया कि ‘ब्रह्म कौन है?
उत्तर मिलता है कि एको हि रुद्रः।’
आगे चलकर स्पष्ट किया जाता है कि
‘स शिव।।’’
यह भी आगे स्पष्ट किया गया है कि जगत का कारण स्वभाव न होकर स्वयं भगवान् शिव ही इसके अभिन्न निमित्तोपादान कारण है।
एको हि रुद्रो न द्वितीयाय तस्थयं इमोल्लोकानीशत ईशनीभिः।
प्रत्यंजनांस्तिष्ठिति संचकोचान्तकाले
संसृज्य विश्व भुवनानि गोपाः।।
इसका आशय यह है कि जो अपनी शक्ति से इस संसार के शासक पद पर प्रतिष्ठित हैं वह रुद्र एक ही है। इसलिये ही विद्वानों ने जगत में कारण के रूप में किसी अन्य का आश्रय नहीं लिया है।
कहने का अभिप्राय यह है कि शिव और रुद्र एक दूसरे  पर्यायवायी शब्द हैं।
भगवान रुद्र को इस कारण कहा जाता है क्यों रुत् अर्थात दुःख को विनष्ट कर देते हैं-‘रुत् दुःखम् द्रावयति नाशयतीति रुद्रः।’
भगवान शिव के लिये ही सत्यम् शिवम सुंदरम शब्दों का प्रयोग किया गया है। सत्य जो कि अदृश्य है और इस संसार के संचालन का कारण नहीं है। वह सृष्टिकर्ता है पर वह कर्म का कारण नहीं है। उसमें इद्रियों के गुण नहीं है। वह न सुनता, न बोलता और न कहता है क्योंकि वह कारण नहीं है।
यह मायावी संसार अत्यंत आकर्षक लगता है।  इस सत्य और सुंदरम के बीच स्थित शिव हैं।  वह इस संसार के कारण हैं।  वह परमात्मा का वह स्वरूप हैं जो दृश्यव्य होकर संसार को चलाता दिखता है पर वह सुंदर नहीं है।
कहा जाता है कि जब भगवान शिव की विवाह के लिये बारात निकली थी उसमें शामिल गणों को देखकर लोग डर गये थे।  यह गण हमारी इस सृष्टि रूपी देह में भी विराजमान हैं।  बाहर से शरीर कितना आकर्षक लगता है पर अंदर का दृश्य देखकर कोई भी डर सकता है।  अब तो शरीर के अंदर झांकने वाली मशीनें आ गयी हैं और उससे अगर अपने अंदर देखें तो  स्वयं ही डर जायें। मगर यही डराने वाले तत्व इस आकर्षक शरीर को संभाल रहे हैं यही भयानक गण इस आकर्षक संसार का आधार हैं।  कहने का तात्पर्य यह है कि परमात्मा सत्य के बाद शिव रूप में स्थित होने पर आकर्षक नहीं लगते पर इस संसार को भौतिक रूप से सुंदर बनाते हैं।  शिव तो सत्य और सुंदरम को जोड़ने वाले तत्व हैं और इसके लिये तो उन्होंने विष तक पी लिया जिससे नीलकंठ भी कहलाये।  अगर वह विष नहीं पीते तो क्या संसार का निर्माण होता? शायद नहीं और इसलिये उनको इस जगत के निर्माण संचालन का कारण भी माना गया है। गंगा आकाश में अदृश्य रूप से स्थित है, पर दिखती नहीं। धरती पर उसका स्वरूप आकर्षक दिखता है पर वह शिव नहीं दिखते जिन्होंने उसे जटाओं में धारण किया है, मगर उनकी उपस्थिति की अनुभूति है। वह गंगा के प्रवाह का कारण है। शिवजी की जटायें भले सुंदर न हों पर वह धरा पर बहती पावन नदी गंगा के सौंदर्य का कारण है। यह शिव तत्व ही सारे संसार के चलने का निमित या कारण है।
ऐसे भगवान श्री शिव जी को हार्दिक नमन। ॐ  नमो शिवायः।


कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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4 comments:

Udan Tashtari said...

आभार!!

महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ.

परमजीत सिहँ बाली said...

महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ.

महेन्द्र मिश्र said...

महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामना...

Devi Nangrani said...

Mahashivratri ki shubhkamnayein.

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