अपने मन की हलचलों के साथ
चला जाता हूं
कभी कभी किनारे पर आकर
करता हूं आत्म मंथन तो
अपने ही दिल के ख्यालों पर
अपने को हंसता पाता हूं।
किया था कुछ लोगों पर भरोसा
दिया था खुद को धोखा
दूसरों को क्या दोष देता।
निभाया था साथ अपनों का
अपनी इज्जत बढ़ाने के सुख की खातिर
क्यों शिकायत करूं कि
मैंने कुछ नहीं पाया।
कई इंसानी बुतों को रास्ता दिखाकर
मैंने अपने चिराग होने का अहसास पाला
उनका क्या दोष
जिन्होंने मतलब निकालकर
पलटकर नहीं देखा।
जब करता हूं आत्म मंथन
होता है यह अनुभव कि
मेरे मन में उठती हुई हलचल
क्षणिक रूप से उठती है
फिर गिरती है जिंदगी के सत्य रूपी दरिया में
व्यर्थ ही उनके साथ कभी हंसकर तो
कभी रोकर समय बिताया।
अपनी हालातों के लिये
बस अपने को ही जिम्मेदार पाया।
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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