हाशिए पर उनका नाम भी नज़र आता है,
दाव पैंच में हैं वह माहिर,
नहीं करते अपनी चालाकी जाहिर,
कहीं न कहीं उनको पद मिल ही जाता है।
जनाब! हाशिए के हीरो बहुत अपने देश में
चंद कदम चलते हैं
तो अखबार में फोटो उनका छप जाता है।
यही वजह है कि
सभी चाहते हैं हाशिए पर चमकना
लक्ष्य के लिये संक्षिप्त मार्ग पकड़ना
जिनकी ख्वाहिश बड़ी है,
पर काम करने की इच्छा हाशिए पर खड़ी है
मेहनत करते हुए उनका सीना हांफ जाता है।
ज़माना भी चलता टेढ़ी है चाल
चरित्र हो गया है बेहाल
इसलिये हाशिए का हीरो कोई भी बन जाता है।
---------------------------
कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
No comments:
Post a Comment