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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/16/10

क्रिकेट के खिलाड़ी कहें या मज़दूर-हिन्दी लेख (cricket player or mazdoor-hindi lekh)

क्या बीसीसीआई कोई कंपनी है और देश के नाम पर खेलने वाले उसके खिलाड़ी कोई मज़दूर यह श्रमिक हैं?
यह प्रश्न मजाक लग सकता है पर हालात तो कुछ इसी तरह बयान बर रहे हैं। टी-20 विश्व में बीसीसीआई की टीम बुरी तरह से हारी। एक तरह से न खेलकर हारी। जीत हार खेंल का हिस्सा है पर फिर भी यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है कि कौन कैसे खेला?
अगर बीसीसीआई की टीम के खिलाड़ियों का खेल देखा जाये तो ऐसा लगता था कि जैसे बोझ उतारने वहां गये थे। उनके साथ मजबूरी थी कि उनको वहां जाकर अपने स्वामियों का हुकुम बजाना भर था।
कप्तान ने विश्व कप में जाने से पहले अपने मालिकों का बचाव करते हुए दावा किया था कि हाल ही में संपन्न क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में कथित रूप से राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों के खेल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
एक स्वामीभक्ति मज़दूर या कर्मचारी ऐसा ही करता है। बाद में टीम हार गयी तो इसी कप्तान ने कहा कि क्लब स्तरीय मैचों के रात्रिकालीन मेल मिलापों में हुए थकावट उन्हें ले डूबी। यह बयान भी ऐसा ही था जैसे कोई कर्मचारी या मज़दूर किसी काम के बुरे हो जाने पर अपने स्वामी को उसके दोष बताते हुए देता है।
इधर टीम के स साथ वेस्टइंडीज गये कोच ने प्रतिवेदन दिया है कि आठ खिलाड़ियों का वजन ज्यादा था-स्पष्टतः यह खिलाड़ियों की अक्षमता का प्रमाण है-और यह भी खिलाड़ी अनुशासन हीनता बरत रहे थे।
इस विवाद में सबसे अधिक महत्वपूर्ण बयान उस तेज गेंदबाज का है जिसने कहा था कि क्लब स्तरीय प्रतियोगिता के मैचों के बाद रात्रिकालीन मेल मिलापों में उनका शािमल होना उनके अनुबंध का हिस्सा था।
अपने आप में यह बात महत्वपूर्ण है कि किसी खिलाड़ी को उसके खेल से पृथक किसी अन्य गतिविधि में शामिल होने के लिये बाध्य किया जा सकता है। कहा जाता है कि बीसीसीआई क्रिकेट की सेवा करने वाली एक संस्था है पर यह अनुबंध इस बात का प्रमाण है कि वह अब एक ंकंपनी की तरह हो गयी है और सेवा तथा सामाजिक कार्य तो केवल करों से बचने का बहाना मात्र है। पहले तो क्लब स्तरीय प्रतियोगिता ऐसे चल रही थी जैसे कि बीसीसीआई का उससे प्रत्यक्ष कोई लेना देना नहीं है पर जब अधिकारियों के आपसी विवाद सार्वजनिक हुए तो पता लगा कि उसकी एक उपसमिति इसका संचालन कर रही थी जिसका मुख्य प्रबंधक जिसे बाद में हटा दिया गया। उसे हटाने के बाद बीसीसीआई का प्रमुख ही अब उसका कर्ताधर्ता है यह अलग बात है कि उसने वहां अपना एक मुखौटा बिठा दिया है।
हम यहां क्रिकेट खिलाड़ियों की बात करें जिनको खेल से इतर अन्य गतिविधियों में शामिल होने के लिये बाध्य किया। इन रात्रिकालीन मेल मिलापों में शराब और शबाब के दौर चले। रैम्प पर खिलाड़ी सुबह चार बजे तक नाचे-उनसे फिल्म अभिनेताओं जैसा काम लिया गया। सबसे बड़ी बात है कि उनकी टीमों के स्वामी चाहते थे कि वह उनके बाहर से आये मित्रों से मिलें ताकि वह किसी ‘प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाडी’ के उनके अंतर्गत काम करने के आकर्षण का शिकार बने। खिलाड़ी पैसा कमाने के लिये यह सब करने लगे। कोई शिकायत नहीं की।
मुश्किल यह हो गयी कि विश्व कप की हार ने सारी पोल खोल कर रख दी। देश में जमीन पर आने वाली गेंदों के खेलने के आदी हो चुके खिलाड़ी वेस्ट इंडीज की उछाल वाली पिचों पर हाहाकर ढह गये मगर यह तकनीकी कमी के मुद्दे से अधिक इस बात का द्योतक था कि उनकी आंखें अभी भी नींद से भरी हुई थीं। क्लब स्तरीय प्रतियोगिता के उनकी खुमारी अभी तक उनमें साफ दिखाई दे रही थी।
क्ल्ब स्तरीय प्रतियोगिता पूरी 45 दिन चली और उसमें खिलाड़ियों की शारीरिक और मानसिक थकान का अनुमान शायद उनको स्वयं भी नहीं रहा होगा। अब जब लोग जवाब मांग रहे हैं तो खिलाड़ी अपनी बातें खुलकर न सही दबी जुबान से तो कह ही रहे हैं क्योंकि मुख्य रूप से आलोचना का वही शिकार बने हैं।
टीवी चैनलों में अनेक खिलाड़ियों के इन रात्रिकालीन मेल मिलापों के दौरान महिलाओं के साथ नाचते हुए दृश्य दिखाये जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनको बंधुआ मजदूर की तरह उपयोग में लाया गया। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि वह नीलाम हुए थे। उनकी बोलियां लगी थी। जिन अमीरों ने उनकी बोलियां लगाईं वह कोई परमार्थ का काम नहीं करने लिये लगाई। स्पष्टतः उनका उद्देश्य पैसे के साथ प्रतिष्ठा कमाना भी था।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि खिलाड़ियों ने खराब खेला पर उसके लिये जिम्मेदार वह अकेले नहीं हैं। सच तो यह है कि विश्व कप में वह खिलाड़ी कम देश के नाम का बोझा ढोते हुए मज़दूर अधिक दिखे। उनमें उत्साह की कमी भारी कमी थी जो उनके खेल में साफ दिखाई दी। आखिर एक मज़दूर को कितना भी पैसा का लालच क्यों न हो पर एक समय वह थक जाता है। काम करता है पर उसकी चेहरे से थकावट नहीं छिपती। मुश्किल यह है कि कोई श्रमिक संगठन यह मामला भी नहीं उठा सकता क्योंकि अंततः यह खिलाड़ी भी स्वयं कम पूंजीपति नहीं है मज़दूर की तरह खेल रहे हैं तो क्या?
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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