समाज सेवक जी की पत्नी प्रसन्न हो गयी
और बोली
‘धन्य भाग मेरे जो
आप बरसात होने के लिये यज्ञ करवा रहे हैं,
समाज में अपने साथ मेरी भी इज्जत बढ़वा रहे हैं,
चलो आपके मन में
जन कल्याण की बात तो आई,
मैंने तो अभी तक यही देखा कि
भले के नाम पर चंदा वसूलने के अलावा
किसी अन्य काम की सुधि नहीं आई।’
सुनकर समाज सेवक तमतमाये और बोले
‘यह सुबह सुबह क्या
जन कल्याण की बात कर दी,
अच्छे भले काम पर अपनी लात धर दी,
अरे भागवान,
इस यज्ञ के लिये ढेर सारा
चंदा लोगों से लिया है,
उसमें से कुछ खर्च करना जरूरी है
इसलिये सस्ते में यज्ञ का ठेका दिया है,
फिर यह अपने पुराने धंधे की नयी शुरुआत है
शायद बरसात जोरदार हो जाये,
कहीं बाढ़ अपनी रंगत जमाये,
न हो तो अकाल डाले अपनी छाया,
अपने लिये तो जुट जाये चंदे की माया,
पिछले साल घोटालों की वजह से
बंद कर दिया था चंदे का धंधा,
घोटालों की चर्चा से पास आ रहा था
बदनामी का फंदा,
वैसे चाहो तुम जनता में
अपने धार्मिक होने का ढिंढोरा पीट लो,
मुफ्त में समाज का दिल जीत लो,
मैं तो उन मेहमानों पर ध्यान दूंगा
जिनसे बाढ़ या अकाल के लिये चंदा लूंगा,
किसी का भला करते देखा था मुझे कभी
जो अभी ऐसी मूर्खतापूर्ण बात तुम्हारी बुद्धि में आई।
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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