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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/17/10

अभिव्यक्ति की आज़ादी का व्यवसायिक प्रचार माध्यमों पर (बिग बॉस सीजन 4 तथा राखी का इंसाफ) नियंत्रण से संबंध नहीं-हिन्दी लेख (abhivyakti ki azadi aur bigg boss session 4 and rakhi ka insaf)

आखिर सरकार ने बिग बॉस तथा राखी का इंसाफ पर अपना चाबुक चला दिया। दोनों ही कार्यक्रम रात 11 बजे से सुबह पांच बजे तक ही प्रसारित करने का प्रतिबंध लगाकर सरकार ने यह तो साबित कर दिया कि वह अनियंत्रित हो रहे प्रचार माध्यमों पर कुछ नियंत्रण करना आवश्यक समझती है। इस पर बहस होगी। अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला होने जैसे जुमले सामने आयेंगे। खासतौर से भौंदू समाज की पुरानी परंपराओं का हवाला देकर रूढ़िवादियों पर हमला किया जायेगा।
एक टीवी चैनल में इस बहस की शुरुआत हो चुकी है। जिसमें एक सभ्य शिक्षक ने कहा कि ‘सरकार ने सही काम किया।’
नियमन विरोधी ने कहा कि‘सरकार को बस यही नज़र आ रहा है। बाकी समस्यायें नहीं दिखती।’
विद्वान ने कहा कि ‘ सरकार का जनता के प्रति जवाबदेह होती है। आखिर दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार है।
प्रतिवादी ने कहा कि ‘काहे की सरकार, बाकी जगह तो नहीं दिखती।’
विद्वान ने कहा कि-आप ऐसी बात न करें, अगर हमारे यहां सरकार न होती या जवाबदेही से भागती तो हमारा देश अफगानिस्तान जैसा होता।’
बहरहाल बहसें जारी रहेंगी। सरकार ने इन बिग बॉस-सीजन 4 और राखी का इंसाफ पर नियंत्रण नहीं बल्कि उसके समय का नियमन किया है। अच्छा किया या बुरा इसका फैसला हम जैसे मामूली लोग नहीं कर सकते क्योंकि इस देश में बहसों के लिये ढेर सारे प्रयोजित विद्वान है। अलबत्ता आज़ादी पर हमले वालों के लिये अपने पास ढेर सारे जवाब हैं।
सबसे बड़ी बात यह कि यह सभी कार्यक्रम अभिव्यक्ति का नहीं व्यवसाय का प्रतीक हैं। मनोरंजन कर कमाने के लिये बनाये जाते हैं न कि किसी भी कला या कौशल को अभिव्यक्त रूप देने के लिये इनको प्रायोजित किया जाता है। जब कोई व्यवसाय होता है तो राज्य का काम है कि वह उसकी अच्छाई और बुराई पर नज़र रखे। नियंत्रण या नियमन जो जरूरी समझे।
इन धारावाहिकों से समस्या यह थी कि यह उस मुख्य समय में चलाये जा रहे थे जब भारत का एक वर्ग कोई कार्यक्रम देखना चाहता है। ऐसे में रिमोट पर उंगली फिराते हुए यह कार्यक्रम उसके सामने आ ही जाते हैं और चाहे अनचाहे वह इनको देखने लगता है। टीवी चैनल मनोरंजन के नाम पर उसके सामने हिंसा परोसते हैं तो वह निराश भी होता है और उसका ध्यान फिर अन्य कार्यक्रमों पर नहीं जाता। प्रचार प्रबंधक इसका लाभ किस तरह उठाया जाता है यह राखी के इंसाफ में देखने को मिला। उसके कार्यक्रम में शामिल एक युवक अवसाद में मर गया। यह खबर सभी समाचार चैनलों पर थी। ऐसे में उस दिन यह कार्यक्रम प्रसारित करने वाला टीवी चैनल पूरे दिन राखी के इंसाफ का नया कार्यक्रम प्रसारित करता रहा ताकि समाचार चैनलों की चर्चा सुनने के बाद रिामोट पर उंगलियां नचाते हुए दर्शक उसकी पकड़ में आये। वरना क्या उसके पास दूसरे कार्यक्रम नहंी थे। सुबह, शाम और रात तक वही कार्यक्रम! यह व्यवसायिक बेईमानी का मामला है न कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का। बिग बॉस सीजन चार में फिक्सिंग की बात तो अब उसमें शामिल लोग भी कहने लगे हैं। मतलब एक तरफ आप दावा करे हैं कि यह वास्तविक प्रसारण है दूसरे उसमें पूरी तरह नाटकीयता है जिनकी पटकथा लिखी गयी है। यह झूठ व्यवसायिक ठगी का विषय है जिसकी लोकतंत्र के नाम पर इज़ाजत नहीं दी जा सकती। राखी का इंसाफ धारवाहिक किस रूप में न्याय का विषय छूता है जरा बताईये, यह तो अफवाह फैलाने जैसा विषय है जिस पर नियंत्रण करना जरूरी है।
सबसे ज्यादा दिलचस्प यह है कि यह नियमन समाचार चैनलों पर भी लागू किया गया है जो इसके अंश दिखाकर अपनी प्रसिद्ध बढ़ाते हैं। यह बात एक समाचार चैनल ने बताई पर इसे अधिक महत्व नहंी दे रहे। यह नियमन ऐसे चैनलों के लिये कैसा रहेगा यह तो बाद में पता चलेगा? हां एक बात बड़ी अज़ीब लगी। एक तरफ नियमन विरोधी कह रहे हैं कि सरकार के कदम से इन दोनों धारवाहिकों पर कोई असर नहीं पड़ेगा बल्कि उसने तो अनजाने में टी. आर. पी. बढ़ाने का काम किया है क्योंकि जिसे देखना है वह तो देखेगा।
विद्वान ने पूछा-‘फिर इस नियमन को विरोध क्यों कर रहे हो भाई।’
जवाब उसी अभिव्यक्ति की आज़ादी का। समाचार चैनलों में जब यह बहस होगी तो बार बार यही बात आयेगी क्योंकि अब उन पर भी नियमन की तलवार लटकाई गयी है। इन दोनों चैनलों की कोई समाज में छवि है इसका आभास हमें तो नहीं हुआ अलबत्ता समाचार चैनल उनके अंश बार बार हमारे सामने लाते रहे जो कि ऐसा ही है कि हलवाई से हम कचौड़ी मागें और वह समोसा पकड़ा दे। हम उसे मना कर सकते हैं पर इन प्रचार माध्यमों पर आम आदमी का नियंत्रण नहीं है इसलिये यह काम तो सरकार को ही करना है क्योंकि यह व्यवसायिक चालाकी है कि हम समाचार देखने के लिये चैनल पर जायें और मनोरंजन परोस दें। ऐसे में सरकार से ही तो आसरा है कि वह अपने देश के नागरिकों को प्रचार स्वामियों शोषण से बचाने के लिये यह व्यवस्था करे कि वह जो देखना चाहे वही देखने को मिले न कि मनोरंजन में झगड़ा और समाचारों में उनके अंश!
इन चैनलों को लोग देखना चाहते हैं, ऐसा दावा करने वालों को इसकी असलियत बहुत जल्द पता लग जायेगी। पहली बात तो यह कि आदमी चाहे कितना भी युवा और दमदार हो रात उसे थका देती है। शरीर नहीं तो दिमाग से वह उदास हो ही जाता है। वैसे भी यह कार्यक्रम थोपे गये थे। दूसरा यह कि समाचार चैनलों के अंश ही इस कार्यक्रम की प्रसिद्धि बढ़ाने में सहायक थे। वरना तो इनकी प्रसिद्धि समाज में न की बराबर है। इनकी क्या, अमिताभ बच्चन का कौन बनेगा करोड़पति भी अब वैसा चर्चित नहीं है। हैरानी इस बात की है कि स्वस्थ और मनोरंजन से सराबोर सब टीवी के किसी कार्यक्रम की चर्चा प्रचार माध्यमों में नहीं होती जबकि समाज में उनका प्रभाव दिखता है। सीधी बात कहें तो टी. आर. पी. अपने आप में एक भ्रामक प्रचार है और उसमें भी बहुत सारे धोखे हैं। अगर ऐसा न होता तो पहले देश की बदनाम हस्तियों और अब विदेश से पामेला एंडरसेन को बुलाया गया है ताकि बिग बॉस को वास्तविक रूप से लोकप्रियता मिले जिसे अभी भ्रामक टी.आर.पी. के सहारे समाचार चैनल चला रहे हैं। अंत में यह भी एक बात कहेंगे कि हम इसमें श्लीलत और अश्लीलता की चर्चा भी नहीं करेंगे क्योंकि इन कार्यक्रमों के निर्माण तथा प्रचार में होने वाली चालाकियां अधिक महत्वपूर्ण हैं।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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