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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/20/12

लाचार लोगों की उम्मीद-हिंदी व्यंग्य कविताएँ (lachar logon ki umeed-hindi vyangya kavitaen or satire poem's)



कोई न कोई किसी का यहां सगा है,
फिर भी हर जगह दगा है
कहें दीपक बापू
हमारे पास नहीं वफा खरीदने की ताकत
बाज़ार में हर कोई ज्यादा दाम मांगने लगा है।
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बरसात हो या सूखा
उनके घर दौलत से भर जाते हैं,
मदद के लिये कागजी काफिले चलतें,
पाने वाले मौत से पहले मर जाते हैं।
कहें दीपक बापू
काली माया ने बना दिये ढेर सारे महल
बसे जिसमें भलाई के व्यापारी
नाउम्मीद होती है फिर भी
लाचार लोग वहां हाजिरी बजाते हैं
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’’,
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 
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