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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/21/13

हमारे लिये तो राज्य प्रबंध चांद पर जाने से अधिक कठिन-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन(hamare liye to rajya prabandh chand par jane se adhik kathiy-hindi vyangya chinttan,hindi satire thought ’



                        आमतौर से हम जैसे फोकटिया निर्दलीय लेखकों के लिये देश की चुनावी राजनीति पर लिखना कठिन होता है। इसका कारण है कि यह राजनीति संगठनों के आधार पर चलती है और जो किसी संगठन विशेष से न जुड़ा है न उनसे कोई प्रतिबद्धता है वहां हम जैसे फोकटिया लेखक के लिये लिखना उबाने वाला काम भी होता है।  अलबत्ता भारतीय अध्यात्म लेखन करते हुए राजनीति के व्यापक अर्थ हमारी समझ में आ ही गये हैं। भारतीय अध्यात्म दर्शन में कर्म के तीन प्रकार माने गये है-सात्विक, राजसी तथा तामसी।  जिस नीति का संबंध ही राज्य से है वहां राजसी प्रवत्ति होने के कारण उसे राजसी कहा जाता है।  व्यक्ति को परिवार, समाज तथा देश में राजनीति के सहारे ही अपने राजसी लक्ष्य को पूरा करने का अवसर मिलता है। इसलिये राजनीति का अर्थ अत्यंत व्यापक है। चूंकि चुनावी राजनीति में अंततः मनुष्य ही सक्रिय होते हैं तो उनमें श्रेष्ठ राजसी प्रवृत्ति होना ही चाहिये यह हमारा मानना है।
            यह लेख हम दिल्ली प्रदेश सरकार के गठन पर चल विषय पर ही लिख रहे हैं।  हमारा किसी प्रकार का प्रत्यक्ष संबंध दिल्ली से नहीं है पर एक सामान्य नागरिक के नाते वहां होने वाले घटनाक्रम से पर विचार तो उठते ही रहते हैं। उस पर समाचार सुनने के नशेड़ी होने के कारण समाचार टीवी चैनल देखने से बाज नहीं आते। यह अलग बात है कि प्रचार माध्यम अपने विज्ञापन का समय पास करने के लिये ऐसे समाचार पूरे दिखाते हैं जो बोर करते हैं।
            दिल्ली में देश के दो बड़े राजनीतिक दलों के बीच एक नया दल आया है। चुनावी परिणामों के अनुसार  एक बड़ा राजनीतिक दल पहले स्थान पर तो दूसरा तीसरे स्थान पर ही है। दूसरे नंबर पर नया दल रहा।  प्रथम स्थान प्राप्त राजनीतिक दल ने सरकार बनाने से इंकार कर दिया।  यकीनन तीसरे स्थान पर रहे राजनीतिक दल से उसे समर्थन मिलना भी नहीं था।  पहले और तीसरे स्थान पर चल रहे राजनीतिक के बीच राष्ट्रीय स्तर पर दोनों के बीच प्रतिद्वंद्वता इस तरह की आम लोग भी यह मानते हैं कि उनके बीच प्रत्यक्ष सहयोग बन ही नहीं सकता। इसलिये नये दल को तीसरे दल का समर्थन मिलना एक तरह से तार्किक बात मानी जा सकती है। समस्या यह है कि नये दल के लोगों के पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है पर वह अपने तर्क से यह प्रमाणित करने का प्रयास कर रहे हैं कि वह कुप्रबंध दूर कर दिल्ली की व्यवस्था सुधार लेंगे। वह अनेक प्रकार के मंत्र बता रहे हैं। यहां यह भी बता दें कि मंत्र का आशय किसी लक्ष्य को पूरा करने के लिये अपनायी जाने वाली प्रक्रिया के सूत्र से है न कि जापने वाले मंत्र की किसी धारणा पर ध्यान रख रहे हैं।  अट्ठारह मंत्र तो इस दल ने बता ही दिये हैं।  सार्वजनिक प्रचार से विरोधी लोगों को भी इन मंत्रों का पता चल ही गया है।  संभव है विरोधियों ने मान लिया हो कि यह मंत्र तो बस जापने लायक ही हैं उनके आधार पर कोई काम होना कठिन है।  इस नये दल को राजनीतिक शास्त्र का ज्ञान नहीं है इसलिये प्रतिदिन अपने मंत्र बताता जा रहा है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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लोकप्रसिद्धमेवैतद्वारि वह्योर्नियामकम्।
उपायोपगृहीतेन तेनैव परिशोष्यते।।
            हिन्दी में भावार्थ-संसार में यहा कहावत है कि जल से अग्नि बुझ जाती है और उपाय करने से वही अग्नि भी जल को सुखा डालती है।
संरक्षेन्मन्बीजं हि तद्वीजं हि महीभुजाम्
यस्मिन्न भिन्ने ध्रुवं भेदो गुप्ते गुप्तिरनुत्तरा।
            हिन्दी में भावार्थ-अपने कार्य के मंत्र और रहस्य को सदैव गुप्त रखें यही राजनीति का मूल तत्व है। उसके खुल जाने पर पर कार्य में बाधा पैदा होती है इसलिये अपने मंत्र की रक्षा करें।
            हम इस दल में इसलिये रुचि लेते हैं क्योंकि इसके अधिकतर सदस्य अन्ना हजारे के कथित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का भाग रहे हैं और कहीं न कहीं वही लोकप्रियता इनकी चुनावी सफलता का कारण रही है।  यह सही है कि देश के हालत ठीक नहीं है पर उसके अनेक कारण है जिनमें बढ़ती जनंसख्या तथा कुप्रबंध दोनों ही है। मान लीजिये कुप्रबंध की व्यवस्था से निपटा भी गया तो बढ़ती जनसंख्या का दबाव सहन करना कठिन है।  हजार लोगों से उनकी समस्याओं को दूरे करने का वादा कर पूरा किया तो पता लगा कि दो हजार लोग वही समस्या लेकर फिर सामने खड़े हो गये।  हमारा मानना है कि देश में पानी, बिजली और परिवहन की मूलभूत समस्यायें दूर हो जायें तो वैसे ही देश विकसित हो जायेगा मगर लोकलुभावन नारे लगाने वाले इसे याद नहीं रखते। एक अर्थशास्त्र का छात्र (विद्वान न समझें) होने के नाते हमारा मानना है कि पूंजीगत विषयों पर राजस्व का व्यय अधिक होना होना चाहिये और जनकल्याण के लिये एक सीमा तक ही बजट रखा जाना चाहिये।  देखा जा रहा है कि लोकतंत्र की वजह से लोगों का मन जीतने के लिये तात्कालिक जन कल्याण कार्यक्रमों पर अधिक और जनता को लंबे समय तक लाभ देने वाले पूंजीगत निर्माणों पर कम ध्यान दिया जा रहा है।  नये दल के लोगों को अर्थशास्त्र की समझ भी कम दिखती है क्योंकि वह प्रशासन से जुड़े खर्च के मसलों पर तो बोलते हैं पर अपने कार्यों के लिये बजट जुटाने के संबंध में उनका ज्ञान प्रमाणिक रूप से नहीं मिलता है। संभव है राजस्व जुटाने का विषय सार्वजनिक करने में उनको साहस नहीं हो क्योंकि यह अप्रिय होता है इसलिये वह बताना नहीं चाहते हों। मूल बात यह है कि सरकार का काम बजट से होता है और इस बीच में कोई बड़ा परिर्वतन विधानसभा में सहमति के बिना नहीं हो सकता।
             नये दल वालों की क्षमता पर एकदम संदेह करना ठीक नहीं है पर एक बात तय है कि राज्य प्रबंध एक गूढ़ विषय है और उसमें अर्थशास्त्र तथा उससे जुड़े राजनीति, समाज, प्रबंध तथा भूगोल शास्त्र की भी समझ होना ही चाहिये। नये दल के रणनीतिकार मानते हैं कि पुराने दलों ने ढंग से व्यवस्था नहीं संभाली। उनके नजरिये यह बात सही हो सकती है पर उनका यह दावा करना कि राज्य प्रबंध चांद पर जाने की तकनीकी से अधिक कठिन नहीं है, हास्याप्रद है।  हमारा मानना है कि तकनीकी ज्ञान के साथ ही किसी राज्य का समर्थन हो तो चांद पर जाना सरल है पर राज्य व्यवस्था को सहजता से चलाना अर्थ, समाज, राजनीतिक, प्रबंध तथा भूगोल शास्त्र के ज्ञान तथा कुशल प्रबंध की क्षमता के बिना उससे कहीं  कठिन ही नहीं वरन् असंभव है। हम यहां भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की बात नहीं करेंगे क्योंकि नये दल वालों के  लिये यह आजकल पढ़ने योग्य विषय नहीं है। बहरहाल हम इंतजार कर रहे हैं कि उनकी रणनीति किस तरह की होती है? समाचार चैनल दिल्ली के राजनीतिक घटनाक्रम को फिल्म की तरह चला रहे हैं तो हम भी मनोरंजन की दृष्टि से यह सभी देख रहे हैं। अपने पास ढेर सारे आईडिये सरकार चलाने के लिये हैं पर गनीमत है कि प्रसिद्धि नहीं मिली वरना हम भी ऐसे अनेक दावा करते तो चांद पर जाने से ज्यादा सरल लगते पर होते नहीं।  यह हम अपने लिये कह रहे हैं और हमारा कोई पाठक नये दल से जुड़ा हो तो वह इसे हमारी ही अयोग्यता समझे।  वैसे तो हमें यहां अधिक पढ़ा नहीं जाता और अध्यात्मिक पहचान के कारण राजसी विषयों से जुड़े लोग हमें वैसे भी नहीं पढ़ते इसलिये किसी ऐसे पाठक होने की संभावना नही है। हम नये दल वालों को कोई चुनौती देने लायक भी नहीं है क्योंकि दो वर्षों के प्रयासों से वह इतनी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं जबकि हम सात वर्ष से लगातार इंटरनेट पर लिखते रहने के बावजूद अपनी कोई पहचान नहीं बना सके।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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