शिक्षा बन गयी व्यापार
विद्यालय सुविधाओं के
विज्ञापन और प्रचार पर चलते हैं।
पुस्तकें हो गयी सौदे की शय
छात्र अब पुत्र की तरह नहीं
ग्राहक की तरह पलते हैं।
अध्यापक सिखा और पढ़ा रहे
अंग्रेजी चाल का तरीका,
थोड़ा बहुत मनोरंजन का सलीका,
भविष्य में आनंद का सपना
छात्र गुलामी के सांचे में ढलते हैं।
कहें दीपक धर्म से परे शिक्षा
कभी समाज नहीं बना सकती
निकल आये हम भ्रम के मार्ग
अब अपनी करनी पर हाथ मलते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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