बचपन में मिले
जिनको महंगे खिलौने
खेल वह पाये नहीं।
बड़े होकर आम इंसानों से
खेलते सस्ते सपने दिखाकर
मगर वादे महंगे करते नहीं।
करते हैं सभी के भले की पहल
बना लेते अपने बड़े महल
दरियादिल की बनायी छवि
दया दिमाग में जिनके भरी नहीं।
कहें दीपक बापू भाग्य से
करें शिकायत या कर्म का खेल
दर्शक की तरह देखते रहें
ऊंचाई पर खड़े जो लोग
नीचे नहीं देखते
बोलें तो सुन नहीं पाते
शब्द
हवा में खो जाते कहीं।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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