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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/8/14

चुबंन लेना और देना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन लेख(chumban lena aur dena swasthya ke liye hanikarak-hindi vyangya chinttan lekh,kiss and love-hindi satire thought article)



         नई दिल्ली में इश्क के चुंबन का सार्वजनिक प्रदर्शन एक राष्ट्रवादी संस्था के  मुख्यालय पर एक युवा संगठन करवा रहा है जो उसके प्रतिद्वंद्वी या विरोधी विचाराधारा का पोषक माना जाता है।  इसमें शुद्ध राजनीति लक्ष्य दिख रहा है। यह प्रदर्शन केरल तथा पश्चिम बंगाल में सार्वजनिक रूप से चुंबन प्रदर्शन की घटनाओं  विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप हो रहा है जहां उस राष्ट्रवादी संस्था का प्रभाव अधिक नहीं है।  इसलिये कुछ लोगों को शक भी हो सकता है कि उत्तर भारत के युवाओं के हृदय में इस राष्ट्रवादी संस्था  के प्रति नकारात्मक भाव  पैदा करने के लिये किया जा रहा है। इसका कारण यह भी है कि टीवी  पर चल रही बहस में इसी प्रदर्शन में शामिल कुछ युवतियों ने सार्वजनिक रूप से इश्क प्रदर्शन को आपत्तिजनक माना।  हालांकि वह समाज पर भी आरोप लगाती रहीं। उनका अन्यमयस्क बयान इस बात का प्रमाण था कि वह प्रदर्शन में किसी विचार की बजाय अन्य प्रभाव में आयी हैं।
        आजकल इश्क को लेकर हमारे प्रचार माध्यम ज्यादा सजग हैं और जब कोई मामला होता है तो उन्हें खलपात्र के रूप में राष्ट्रवादी संस्था और नायक के रूप में प्रगतिशील या जनवादी संगठन प्रतिष्ठित करने होते हैं। हम जैसे अध्यात्मिक साधकों  के लिये ऐसी घटनायें  अपने ज्ञान तथा विज्ञान के सूत्रों के आधार सामाजिक चिंत्तन करने का अवसर पैदा करती हैं। हमें यह तो नहीं मालुम कि प्यार, इश्क और लव युवा स्त्रियों और पुरुषों के बीच ही हो सकता है यह अन्य संबंधों में इनका अस्तित्व हो सकता है पर इतना जरूर मानते हैं कि प्रेम केवल परमात्मा से ही हो सकता है। इस जीवन में दैहिक तथा सांसरिक रिश्ते तो स्वार्थ के अनुसार बनते बिगड़ते रहते हैं। कहीं हम अपने स्वार्थ से रिश्ते बनाकर बाद में तोड़ते हैं तो कहीं हमारे साथ ऐसा ही प्रसंग सामने आता है-यह अलग बात है कि दूसरे के दर्द का पता नहीं होता पर अपने पर कराहने के अलावा कुछ नहीं कर पाते।
        इस पर चल रही बहस में तर्क हमने सुने तो यह देखकर हैरानी हुई कि इस प्रदर्शन के विरोधियों के पास जहां संस्कृति की रक्षा के नारे के अलावा कुछ नहीं होता तो समर्थकों के पास कथित स्वतंत्रता की दुहाई देते रह जाते हैं।  अब यह टीवी चैनलों ने शालीनता की सीमा तय की है यह सामाजिक विद्वान उससे आगे जाकर बहस नहीं करना चाहते इसका पता नहीं।  जहां तक चुंबन के दृश्य की बात है तो यह दृश्य तब श्रृंगार रस की अनुभूति कराता है जब कोई मां अपनी गोद कें बच्चे का लेती है।  विश्व में यही एक संबंध है जो परमात्मा और भक्त के संबंध की बराबरी कर सकता है।  मां के हृदय  बच्चे  के भाव को ं स्नेह होता है और बच्चे में  मां के प्रति भाव को सम्मान कहा जाता है।  यह दोनों शब्द प्रेम के सहधर्मी सकते हैं पर पर्यायवाची नहीं माना जा सकता है।
        बहरहाल शालीनता और अश्लीलता के बीच चल रहे इस वाद विवाद में हमारा मानना है कि बहस खुलकर होना चाहिये।  हमारा मानना है कि अगर किसी के कृत्य  से जब तक  अन्य व्यक्ति को दैहिक हानि नहीं पहुंचती तब तक राजकीय हस्तक्षेप नहीं हो।  मानसिक कष्ट पहुंचने वाली बात स्वीकार नहीं है।  लोग अपना मन स्वयं संभालें दूसरे का जिम्मा नहीं है।  अक्सर हम दैहिक व्यापार तथा जुआ में लिप्त लोगों के पकड़े जाने की बात हम सुनते हैं पर हमारा मानना है कि ऐसे लोग स्वयं के लिये ही संकट हैं।  अनेक बार मादक द्रव्य पदार्थों का सेवन करते हुए नाबालिग बच्चे भी पकड़े गये।  हमारा मानना है कि यह जिम्मा समाज और परिवार का है।  राज्य का काम है विकास तथा प्रजा की रक्षा जिनका इस तरह के अपराधों से कोई संबंध नहीं जिनमें लगा व्यक्ति दूसरे के लिये कम अपने और परिवार के लिये ज्यादा घातक है। समाज सुधारने से पहले व्यक्ति को सुधरा होना चाहिये और इसका सबसे बड़ा दायित्व परिवार का है।
        हमने देखा कि राष्ट्रवादी विचारकों के पास भी तर्क कम ही होते हैं। उन्हें यह पता है कि पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित एक वर्ग भारतीय परंपराओं का केवल नारों के आधार पर विरोध करता है। वह शांति से नारे लगाता है तो राष्ट्रवादी भी धर्म और संस्कृति का नारा प्रतिकार में लगा देता है। कभी कभी क्रोध का प्रदर्शन भी करता है जिससे अंततः अपने ही अध्यात्मिक ज्ञान के प्रति अनभिज्ञता को उजागर करता है। प्यार के चुंबन लगाने वालों के पास जाकर उनसे ऐसा न करने की याचना करना या धमकाना व्यर्थ है उन्हें तो  यह बताना चाहिये कि चुंबन तो प्यार, लव या इश्क तो स्त्री पुरुष के प्राकृत्तिक संबंधों की पूरी फिल्म का प्रारंभ भर है उससे की आगे अगर कोई दृश्य हो तो वह भी दिखाओ। एक डेढ़ हजार प्रदर्शनकारी उसमें भी अधिकतर  अपने समाज सुधारक ठेकेदारों के बंधुआ बनकर आये लोग उनके विचार ही नहीं जानते, पीछे छिपे आत्म प्रचार पाने के उनकी भूख की समझ कहां से लायेगा?
        हमें पता है कि हमारे देश के लड़के और लड़कियां भले ही अंग्रेजी पद्धति की शिक्षा में फंसे हैं पर फिर भी भारतीयता का भाव उनके अंदर समाप्त नहीं हुआ। ऐसे प्रदर्शन बड़े शहरों में वह भी प्रसिद्ध तथा आकर्षक स्थानों पर हो रहे हैं उससे यह तो साबित होता है कि भारतीयों में अभी अपने अध्यात्म का ज्ञान और जीवन की संस्कृति बनाये रखने का भाव अभी मरा नहीं है। विभिन्न दिवसों पर मंदिरों में जाकर अपनी धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत युवक युवतियों को देखकर यह बात कोई भी समझ सकता है। आखिरी बात यह कि चुंबन लेना या देना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है यह बात स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते रहे हैं। बरसों पहले हमने पढ़ा था कि चुंबन लेने वाला को तो कुछ नहीं देने वाले की पांच मिनट उम्र कम हो जाती है। प्रदर्शनकारियों के सामने यही नारा लगाना चाहिये कि चुंबन लेना और देना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैन कि उसके सार्वजनिक प्रदर्शन पर रुदन या क्रोध करना चाहिये। 
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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