भारतीय अध्यात्मिक दर्शन और पाश्चात्य अर्थशास्त्र के
अनुसार जब मनुष्य स्वयं जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं करता और प्रथ्वी पर उपभोग का
बोझ बढ़ने लगता है तब वह स्वयं ही अपनी रक्षा का उपाय करती है। भारतीय अध्यात्म दर्शन जहां संपूर्ण प्रकृति के
समस्त विषयों पर सामग्री आत्मसात किये हुए हैं वहीं पाश्चात्य विचाराधारा के
अनुसार दर्शन शास्त्र के अलावा अर्थशास्त्र में अन्य सभी शास्त्रो का अध्ययन किया
जा सकता है। इस तरह वहां जीवन दर्शन को समाज से अलग रखकर विचार किया जाता है। इसका
सीधा आशय यह है कि वहां भौतिकता तथा अध्यात्म के बीच तारतम्य स्थापित करने की बात
सोची भी नहीं जाती। यही कारण है कि
प्राकृतिक प्रकोपों पर पश्चिमी तथा पूर्वी विचाराकों की राय बदल जाती है। बहरहाल
इस समय नेपाल में भूकंप की वजह से वहां भारी तबाही हुई है। सारा विश्व वहां मदद के
लिये जुटा हुआ है।
एक बात समझ में नहीं आ रही कि प्रचार माध्यम तथा
विज्ञान विशारद भूकंप से सतर्कता रखने का जो प्रचार कर रहे हैं उससे लोगों में
चेतना बढ़ रही है या भय अधिक पैदा हो रहा है। यह सही है कि भूकंप आने की भविष्यवाणी
नहीं की जा सकती पर आज के विज्ञान ने इतना तो पता ही कर लिया है कि भूकंप के
केंद्र बिंदु कहां है? केंद्र
बिंदुओं पर भूकंप आने पर वहां उसकी तीव्रता अधिक होने से भारी हानि होती है पर
जैसे जैसे दूरी बढ़ती जाती है वैसे उसका पैमाना कम हो जाता है। इमारते हिलती हैं पर
गिरती नहंी हैं। अलबत्ता पुराने जर्जर ढांचे कम तीव्रता पर भी ढह जाते हैं। हमें
यह बात बहुत पहले से ही पता है कि हिमालयीन क्षेत्र में भूकंप के पंक्तिबद्ध
केंद्रबिन्दू हैं। इसलिये उसकी सीमा से लगे भारतीय क्षेत्रों में यह भयानक त्रासदी
की आशंका हमेशा बनी रहती है मगर शेष भारत में अभी ऐसी आशंकायें कम ही हैं।
आमतौर से भूंकप से जब इमारते हिलती हैं तो बाहर आ जाना
चाहिये पर मुश्किल यह है कि भूकंप के झटके न करें तो कुछ भी न हो पर कर दें तो
क्षण में ढांचा गिरा दें। अब वैज्ञानिक कहते रहें कि झटका लगते ही बाहर आ जाओ। फिर
आजकल बड़ी बड़ी इमारतें इतनी बन गयी हैं कि उनमें
से निकलने ही में दस मिनट लग सकते हैं। एक आदमी ने हिलती इमारत से कूद कर
अपना बचाव करते हुए जान दे दी। दो लोगों
भागमभाग में हृदय गति रुक जाने से मौत हो गयी।
स्थिति यह है कि हिमालयीन क्षेत्र में भूकंप आ रहे हैं
पर दहशत पूरे देश में फैल रही है। ऐसा नहीं है कि पहले भूकंप नहीं आते थे पर लोग
परवाह नहीं करते थे। झटके के बाद भी अपनी जगह पर डटे रहे थे। अब आधुनिक प्रचार
माध्यमों ने भूकंप को विक्रय योग्य विषय बना लिया है जिससे सतर्कता की जगह भय का
वातावरण बन रहा है। भूकंप से डरे सहमे लोगों का साक्षात्कार जब टीवी चैनलों पर आता
है तो लगता है कि वह भूकंप के क्षणिक झटके से भयग्रस्त होकर इमारत से बाहर निकल
आना जैसे वीरता का कार्य है। वह प्राण
जिनका जाना ईश्वर की तरह से अभी तय नहीं था वह उन्होंने स्वयं बचाये हैं। धन्य है
भूकंप की महिमा मंडन तथा प्रचार से लोगों
में चेतना कम चिंता अधिक आ रही है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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