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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/20/15

दीपकबापू वाणी रविवार कविवार(Deepakbapu wani Sunday Funday


चित में चाकरी की चाह, स्वामी बनना सपना होये।
दीपकबापूमन का बंधुआ, निज आंनद अपना न होये।।
ज्ञान पढ़कर जड़ हो जाते, ज्ञानी रूप धर मंचीय हो जाते।
दीपकबापूएकांत के स्वर्ग में, भीड़ के लिये बेचैन हो जाते।
स्वर्ग किसी ने कभी देखा नहीं, दान लेने वाले दिला देते हैं।
दीपकबापूधर्म के व्यापारी, कभी मोक्ष से भी मिला देते हैं।
विकास का पहिया गतिवान है, इसी तरह ही चलता जायेगा
दीपकबापूउम्मीद करें, डेंगू का मच्छर दबकर मर जायेगा।।
गांव  बन गये महानगर, सांस में संवेदना की वीरानी हो गयीं।
दीपकबापूभर दिये रंग बिजली में, दुनियां दीवानी हो गयी।।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 
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