सर्दी, गर्मी और बरसात में
रास्ते अपने चेहरा बदलते जाते हैं,
सर्दी की शीतलता से बर्फ जैसे,
गर्मी में बरसती आग से अंगारे जैसे,
बादलों से लेकर नदिया हो जाते है।
चलने का सलीका
आंखों में नजरिया
पैरों में अहसास हो जिनके पास
रास्ते उन्हीं से दोस्ती निभाते हैं।
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वह रास्ते में गुम हो गये
या उनका रास्ता गुम हो गया
पता नहीं चला
अलबत्ता गुमशुदाओं में
उनका नाम लिखा पाते हैं।
उनके दिल की वही जाने
हम तो उनको अपनी आंखों में
तस्वीर की तरह बसाये
बस, यूं ही ढूंढने जाते हैं।
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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