स्मृति मनुष्य का गुण है तो दोष भी है। हम स्मृतियां तो चयन करके अपने मस्तिष्क में नहीं रख सकते। अगर किसी ने प्यार किया है तो वह भी स्मृति बनेगा तो किसी ने गाली दी है वह भी स्मृति में अपना स्तंभ बनायेगी। जितनी स्मृतियां मानस पटल पर होंगी उतना ही अधिक ंिचंतन होगा। कालांतर में यह चिंताओं का पिता बन जाता है।
हमारा मस्तिष्क स्मृतियों का भंडार है। वही उसमें चिंतन और चिंताओं की संवाहक हैं। कुछ विद्वासन मनुष्य में स्मृति का गुण होना अच्छी बात मानते हैं पर कुछ दार्शनिक इस विशेषता को दुर्गुण भी मानते हैं। जिन स्मृतियों से देह में रोमांच पैदा होता है वह अच्छी लगती हैं पर जिनसे निराशा और अवसाद की धारा बहती हैं उनको भुलाना भी कठिन लगता है। मुश्किल यह है कि मनुष्य यह तय नहीं करता कि वह कौनसी स्मृति भुलाये और किसे याद रखे। स्मृतियों पर उसका नियंत्रण नहीं है।
वैसे कष्टकारक तो वह भी स्मृतियां हैं जिनमें हमें मिली प्रसन्नता का इतिहास दर्ज है। उन खुशी के पलों का दोहराव न होना भी बुरा लगता है। कुल मिलाकर स्मृति मनुष्य की पहचान है पर वह उसकी शक्ति और कमजोरी भी है।
स्मृति पर प्रस्तुत है यह कविता-----------
हृदय में स्थित स्मृतियां
कभी कभी आंखों के सामने
घूमती लगती हैं,
जिनमें मिलन है तो विरह भी है,
प्रेम भी है, घृणा भी है,
आशा है तो निराशा भी है,
मान है तो अपमान भी है
व्यथित पलों को भुलाना आसान नहीं है
फिर खुशनुमा अहसासों के
पुनः आगमन की प्रतीक्षा में
आंखों भी थकने लगती हैं।
यूं ही स्मृतियां हमेशा ही
मन को विचलित करती हैं।
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
5हिन्दी पत्रिका
६.ईपत्रिका
७.दीपक बापू कहिन
८.शब्द पत्रिका
९.जागरण पत्रिका
१०.हिन्दी सरिता पत्रिका
No comments:
Post a Comment