मिट्टी से बना इंसान
रात और दिन में चलता बुत की तरह
कोई उनमें शाह नहीं होता,
समंदर जैसी लहरें उठती हैं मन में
पर पिंजरे में बंद है, वह अथाह नहीं होता,
कहें दीपक बापू
भलाई बेच रहे लोग
अपना घर भरने के लिये
महफिलों में गरीबी पर अफसोस के सुर
गाये जाते मजे के लिये
मगर गरीब का कोई हमराह नहीं होता।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’ग्वालियर
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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