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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

4/29/07

जीवन को प्रसन्नता से जीने की कला है योग साधना

जब हमें यह लगे कि हम किसी विषय में पारंगत हो गये हैं तब यह समझना चाहिए कि हम पर अहंकार का हमला हो गया है जो कि मनुष्य का सबसे बुरा गुण है। इस दुनियां में कोई भी किसी विषय में सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। जिस तरह परमात्मा का विस्तार अनंत है उसी तरह माया का विस्तार भी अनंत है। हाँ परमात्मा की अगर सहजता से भक्ती की जाये और अपना समय प्रतिदिन नियमितता से योगासन, प्राणायाम, ध्यान और मंत्रोच्चार कर अपने शरीर, मन और विचारों के विकार निकाले जाएँ तो हम उसके दर्शन प्रतिदिन अपने मन में कर सकते हैं और उसका आनंद भी उठा सकते हैं। परमात्मा का विस्तार अनंत है पर उसे जानने के लिया ज्ञान- जिसे आध्यात्म के नाम से जाना जाता है-एकदम सूक्ष्म है, उसके लिए कोई बहुत बड़ी किताबें खरीद कर पढने की जरूरत नहीं है, पर हम विषयों का ज्ञान-जिसे माया कहा जाता है -उसका विस्तार बहुत हैं । जब हम कहते हैं की अमुक आदमी काबिल है तो उसका आशय किसी विषय में उसे बहुत ज्ञान होने से है। परमात्मा का एक ही रुप है माया के रुप अनेक हैं इसीलिये हमें वह भरमा सकती है और हम अपने अहंकार में उसका आसान शिकार हो जाते हैं। विषयों के ज्ञान में कभी भी अपने सम्पूर्ण होने का दावा नहीं करना चाहिए, क्योंकि जिस तरह माया के अपने रुप बदलते है वैसे ही उसके विषय भी । आपने देखा होगा कि हम अनेक प्रकार के डाक्टर देखते हैं -हड्डी, ह्रदय,दिमाग,कान,नाक और आंख आदि के अलग -अलग डाक्टर होते है। उनमें भी कुछ डाक्टर ऐसे होते हैं जो ज्यादा सफल माने जाते हैं और कुछ सामान्य। जो ज्यादा सफल होते हैं एक दिन वह भी पुराने होकर रह जाते है और उनकी जगह नये युवा डाक्टर लेते हैं- उनके बारे में कहा जाता है उन्होने नवीन ज्ञान प्राप्त किया है और अच्छा इलाज करते हैं। यही स्थिति इंजीनियर के साथ होती है, उनमें भी कयी तरह के होते हैं। बिजली, कंप्यूटर , मकान, और तमाम तरह के विषयों पर पारंगत लोग उससे संबंधित व्यवसाय ही अपनाते हैं । कंप्यूटर में भी सॉफ्ट वेयर और हार्ड वेयर के इंजीनियर अलग-अलग होते हैं। मतलब यह है कि विषयों का विस्तार है और उनमें भी परिवर्तन आते रहते है, जबकी परमात्मा को जानने के लिए जो अध्यात्मिक ज्ञान है उसके स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं आता, वह सूक्ष्म और स्थिर है। हम इस पर ज्यादा बहस करते हैं कि उसे जानने और पाने के लिए कौनसा रास्ता उपर्युक्त है, जबकि ऎसी बहस हमें फिर एक बार विषयों की ओर ले जाती है।
हमें तो परमात्मा को जानने और पाने के लिए ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। बस प्रात: उठकर योग्साध्ना, प्राणायाम, ध्यान और गायत्री मात्र का जाप करें , साथ ही यह भी अपने को यह अनुभव कराते जाये कि हमारे शरीर, मन और विचारों में जो विकार है वह निकल रहे हैं। ऐसा करने से अगले चौबीस घंटे शरीर, मन और विचारों में स्फूर्ति अनुभव करेंगे। याद रखिये योगासाधना केवल बीमारी दूर करने के लिए ही नहीं है जैसा कि प्रचारित हो रहा है , यह जीवन को प्रसन्नता से जीने की कला है। (शेष अगले अकों में)

1 comment:

ललित said...

आत्मा और परमात्मा के योग की step by step विधि और step by step सिद्धि बतायें तो ज्यादा अच्छा होगा?

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