पिछले कयी दिनों से देश में धर्म को लेकर अनेक तरह के विचार व्यक्त किये जा रहे हैं। एक खास बात जो सामने आ रही है युवा वर्ग में धर्म के प्रति रुझान बढ रहा है । इसका मुख्य कारण यह है कि आजकल घरों में उनको ऐसा धार्मिक माहौल नहीं मिल रहा जैसे पहले वाली पीढ़ी को मिलता था, इसके अलावा उन्हें बाल्यावस्था में ही ऐसे भौतिक साधन मिल रहे हैं जिनसे अमेरिकी अब अपने यहां बोरियत अनुभव करने लगे हैं , उनसे उकताने के बाद जब युवक और युवतियां कहीं अध्यात्म पर चर्चा सुनते है तो उन्हें नवीन भाव का अनुभव होता है ।हालांकि आज के अनेक धर्म गुरू केवल अपनी स्वार्थ सिध्दी के कारण ही इस क्षेत्र मैं हैं , उनका उद्देश्य केवल अर्थोपाजन करना ही है न कि धार्मिक परंपराओं को बढ़ाने के लिए प्रयास करना -यही कारण है कि जितने भी धर्म गुरू हैं वह करोड़ों में खेल रहे हैं , फिर भी किया क्या जाये ? युवक-युवतियों को अपनी उकताहट दूर करने तथा मन में शांति के लिए उनके पास इन संतों के प्रवचन सुनने का अलावा कोई चारा भी तो नहीं है।मैं देश में चल रहे माहौल को जब देखता हूँ जिसमें हिदू धर्म के प्रति लोगों के मन में तमाम विचार आते हैं पर उनका कोई निराकरण करने वाला कोई नहीं है। धर्म के नाम पर भ्रम और भक्ती के नाम पर अंधविश्वास को जिस तरह बेचा जा रहा है, वह चिंता का विषय है । विरोध करने पर आदमी को नास्तिक और तर्क देने पर कडी टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। हिंदू धर्म की को पूरी दुनिया सम्मान की दृष्टि से देखती है पर अपने ही देश में धर्म के ठेकेदोरों ने लोगों की बुध्दी का दोहन केवल अपने तुच्छ स्वार्थों की खातिर कर इसको बदनाम कर दिया। हिंदू धर्म के तमाम ग्रंथ हैं और उनमें कुछ ऎसी तमाम बातें है जो उस समय ठीक थीं जिस समय वह कहीं और लिखी गयी थीं, समय के साथ लोग उनसे बिना कहे दूर होते गये। पर जीवन के आर्थिक, सामाजिक , स्वास्थ्य और विज्ञान की दृष्टि से जितना हमारे ग्रंथों में हैं उतना किसी अन्य धर्म में नहीं है। हाँ, इस धर्म को बदनाम करने के लिए इसके विरोधी केवल उन बातों को ही दोहराते हैं जो किन्हीं खास घटनाओं या हालतों में लिखीं गयी थीं और आज अप्रासंगिक हो गयी हैं और लोग उन्हें अब दोहराते ही नहीं है। अब आप लोग कहेंगे कि इतनी सारी पुस्तकों के कारण ही हिंदु धर्म के प्रति भ्रांति फैली है तो मैं आपको बता दूं कि सारे ग्रंथों का सार श्रीमद्भागवत गीता में है। जिसने गीता पढ़ ली और उससे ज्यादा समझ ली उसे कुछ और पढने की जरूरत ही नहीं है। यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं कोई संत या सन्यासी नहीं हूँ न बनूंगा क्योंकि गीता पढने वाला कभी सन्यास नही लेता । वैसे भी आजकल केवल धर्म का ज्ञान होना इतना जरूरी नहीं जितना धर्म के व्यापार के लिए अच्छे प्रबंधक साथ में न रखना । इस पर ज्यादा प्रकाश विस्तार से मैं बाद में डालूँगा , आज मैं ज्ञान सहित विज्ञान वाले इस ग्रंथ में जो भृकुटी पर ध्यान रखने की बात कही गयी है वह कितनी महत्वपूर्ण है-उसे बताना चाहूंगा । शायद भारत में भी कभी इस बात की चर्चा नही हुई कि हिंदु धर्म की सबसे बड़ी ताकत क्या है जो इतने सारे आक्रमणों के बावजूद यह बचा रहा है। अगर लोगों को यह लगता है कि हिंदू कर्म कान्ड भी धर्म का हिस्सा हैं तो मैं आपको बता दूं कि गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहीं भी कर्मकांड के महत्व की स्थापना नहीं की । उन्होने गीता में ध्यान के सिध्दांत की जो स्थापना की वह आज के युग में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ध्यान वह शक्ति है जो हमें मानसिक और शारीरिक रुप से मजबूत करती है जिसकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है। मैं अपने हिसाब से ध्यान की व्याख्या करता हूँ ।
अब तो अनेक पश्चिमी विद्वान् भी मानने लगे हैं हिंदूं की असली शक्ति उनके ध्यान में है, और ज्ञान का केंद्र श्रीमदभागवत गीता में है ।
ध्यान क्या है पहले इस बात को समझ लें । हम सोते हैं और नींद लग जाती है तो लगता है आराम मिल गया पर आजकल की व्यस्त जिन्दगी में तमाम तरह के ऐसे तनाव हैं जो पहले नहीं थे । पहले आदमी सीमित दायरे में रहते हुए शुध्द चीजों का सेवन करते हुए जीवन व्यतीत करते थे और उनकी चिताएँ भी सीमित थीं इसीलिये उनका ध्यान नींद में भी लग जाता था । शुध्द वातावरण का सेवन करने के कारण उन्हें न तो ध्यान की जरूरत महसूस हुई और न गीता के ज्ञान को समझने की। हालांकि मैं अपने देश के पूर्वजों का आभारी हूँ कि उन्होने धार्मिक भावनाओं से सुनते-सुनाते इसे अपनी आगे आने वाली पीढी को विरासत में सौंपते रहे । आज हमारे कार्य के स्वरूप और क्षेत्र में व्यापक रुप से विस्तार हुआ है और हम अपने मस्तिष्क के नसों को इतनी हानि पहुंचा चुके होते हैं कि हमें रात की नींद ही काफी नहीं लगती और हम बराबर तनाव महसूस करते हैं । रात में हम सोते हैं तब भी हमारा मस्तिष्क बराबर कार्य करता है और वह दिन भर की घटनाओं से प्रभावित रहता है। ध्यान हमेशा ही जाग्रत अवस्था में ही लगता है । ध्यान का मतलब है अपने दिमाग की सर्विस या ओवेर्हालिंग । जिस तरह स्कूटर कार मोटर सायकिल फ्रिज पंखा एसी और कूलर की सर्विस कराते हैं वैसे ही हमें खुद अपने दिमाग की भी करनी होगी। एक तरह से हमें अपना मनोचिकित्सक स्वयं ही बनना होगा। जिस बात का जिक्र मैंने शुरू में नहीं किया वह यह कि मुझे याद है जब चार वर्ष पूर्व किसी अखबार में पढा था कि एक अमेरिकी विज्ञानिक का मत है कि हिंदूओं कि सबसे बड़ी ताकत है ध्यान । फिर भी भारत के प्रचार माध्यमों ने इसे वह स्थान नहीं दिया जो देना चाहिए था । यहां मैं ध्यान की विधि बताना ठीक समझता हूँ । सुबह नींद से उठकर कहीं खुले में शांत स्थान पर बैठ जाएँ और पहले थोडा पेट को पिच्काये ताकी हमारे शरीर में से वायू विकार निकल जाएँ और फिर नाक पर दोनों ओर उंगली रखकर एक तरफ से बंद कर सांस लें और दूसरी तरफ से छोड़ें। ऐसा कम से कम बीस बार करें और दोनों तरफ से सांस लेने और छोड़ने का प्रयास करें । उसके बाद बीस बार अपने श्री मुख से ॐ शब्द का जाप करे और फिर बीस बार ही मन में जाप करें और धीरे अपने ध्यान को भृकुटी पर स्थापित करें। जो विचार आते हैं उन्हें आने दीजिए क्योंकि वह मस्तिष्क में मौजूद विकार हीं हैं जो उस समय भस्म हो रहे होते हैं। यह आप समझ लीजिये । धीरे धीरे अपने ध्यान को शून्य में जाने दीजिए-न जा रहा है तो बांसुरी वाले के स्वरूप को वहन स्थापित करिये -धीरे स्वयं ही आपको ताजगी का अहसास होने लगेगा । अपने ध्यान पर जमें रहें उसे भृकुटी पर जमे रहने दीजिए । ऐसा नहीं है कि केवल सुबह ही ध्यान किया जाता है आप जब भी तनाव और थकान अनुभव करे कहीं भी बैठकर यह करें। शुरूआत में यह सब थोडा कठिन और महत्वहीन लगेगा पर आप तय कर लीजिये कि मैं अपने को खुश रखने के लिए यह सब करूंगा ।कुछ लोग इसे मजाक समझेंगे पर यह मेरा किया हुआ अनुभव है। अगर मैं यह ध्यान न करूं तो इस तरह कंप्यूटर पर काम नहीं कर सकता जिस तरह कर रहा हूँ। कम्प्युटर, टीवी और मोबाइल से जिस तरह की किरणें उठती है उससे हमारे दिमाग को हानि पहूंचती है यह भी वही वैज्ञानिक बताते हैं जिन्होंने इसे बनाया है। शरीर को होने वाली हानि तो दिखती है पर दिमाग को होने वाली का पता नहीं लगता। ध्यान वह दवा है जो इसका इलाज करने की ताक़त की रखता है। ध्यान पर ऐसे अनेक प्रयोग किये गये हैं जिनसे पता लगता है वह आदमी के मन में एक स्फूर्ति पैदा करता है। शेष अगले अंकों में।
3 comments:
दीपक जी, धर्म मे जो है गीता मे जो है उस से इंकार नही है ।पर आज उस पर चलने वाले कहाँ हैं?सभी एक दूसरे को समझानें कि कोशिश करते रहते है कि भैये धर्म ग्रंथों मे ये सब लिखा है।फिर रही ध्यान करने की बात,सो भैये लगता है अभी तुमने और ध्यान करना पड़ी है। लोगो को समझाने कू।
ध्यान द्वारा केवल कुछ शारीरिक फ़ायदों की बात कह कर आपने ध्यान की क़ीमत कम कर दी है। क्या ध्यान मोबाइल की किरणों के बुरे असर से बचने और तनाव कम करने के लिए है?
अपनी पोस्ट थोङी छोटी करें ,आपका लिखा हुआ पढने में आसानी रहेगी,और
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