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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/22/07

प्रतिमाओं के आंसू निकलना और हैरी पॉटर का जिंदा रहना

हनुमान जी की मूर्ती से आंसू या पानी निकलने और हैरी पॉटर के जिन्दा रहने की ख़बर के बीच आख़िर क्या सामंजस्य हो सकता है ?

हेरी पॉटर सीरीज की सातवीं एवं अंतिम किश्त में उसे जिन्दा रखा गया है और इससे उसके चहेतों में ख़ुशी हुई और ब्रिटेन और अमेरिका के साथ भारत एवं चीन में भी किताब की दुकानों के सामने भी जश्न का माहौल रहा। दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में कई बच्चे रातभर जागें और सुबह चार बजे ही किताब खरीदने दुकानों पर पहुंच गये। मुझे इन सब बातों से बहुत आश्चर्य हुआ है।

इधर कहीं हनुमान जीं की मूर्ती से आंसू या पानी बहने की ख़बर पर मंदिर में लोगों की भीड़ जमा हो गयी। लोग इसे चमत्कार बता रहे थे। ऐसा पहले भी हो चुका है जब गणेश जी कि प्रतिमा के दूध पीने का चमत्कार हुआ था। लोगों के झुंड के झुंड उन्हें दूध पिलाने के लिए चले जा रहे थे- तमाशा देखने वालों में हम भी थे- और यह हमारा दुर्भाग्य था कि जब हम पहुंचे तब तक चमत्कार बंद हो चुका था।

हमारे लिए दोनों घटनाओं में समानता आदमी के मन को लेकर है जो देह का संचालन करता है। अगर प्रतिमा की आंख से आंसू निकलना या उसका दूध पीना अंधविश्वास है तो हैरी पॉटर पश्चिम से आयातित एक बहुत बड़ा भ्रमजाल और मनोरंजक दोनों ही हैं। बस अन्तर है समाचार माध्यमों द्वारा उसके प्रस्तुतिकरण को लेकर है। हैरी पॉटर से व्यावसायिकता जुडी हुई है तो विश्लेषक उसे अपनी मजबूरियों के चलते दिलचस्प बताते हैं और प्रतिमाओं के साथ कोई विज्ञापन नहीं आता उसे अंधविश्वास बताते हैं। पश्चिम वाले भारत को अंधविश्वासों का देश कहते हैं और मैं उनकी बात मान भी लेता हूँ पर हैरी पॉटर के व्यवसाय में जो उन्होने करतब दिखाए हैं उसे देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि पश्चिम वाले भ्रमजाल में जीते हैं और जेम्स बांड और हेरी पॉटर जैसे कल्पित पात्रो की सहारे अपने लोगों के मन पर नियन्त्रण रखते हैं- फिर हमारे बाबा लोग अगर प्रतिमाओं को दूध पिलाकर लोगों का मन खुश कर देते हैं तो उसमें बुराई क्या है?

उनके भ्रमजाल से तो अपने देश का अंधविश्वास ही ठीक है-हालांकि यहाँ के लोग अंधविश्वासी हैं यह मैं नहीं मानता। कई लोग तो केवल मनोरंजन और प्रयोग के लिए इसमें शामिल हो जाते हैं अन्दर से जानते हैं कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। खबर आती है लोग पहुंच जाते हैं फिर अपने घर चले जाते हैं और भूल भी जाते हैं क्या हुआ था। वापस लोटकर ईश्वर में अपने विश्वास और आस्था के साथ अपने काम में लग जाते हैं पर दुनिया के लोग कहते हैं कि यह देश अंधविश्वास का देश है तो कहते रहें । इस देश के समाचार माध्यम ऎसी खबरों को अंधविश्वास साबित करने के लिए विशेषज्ञ बुला लेते हैं और फिर टिप्पणियों का दौर। इसे सीधे अंधविश्वास करार देने के लिए तमाम तरह के वैज्ञानिक तर्क किये जाते हैं ।

मगर जनाब! यह हेरी पॉटर कौन है? जिसके मरने को लेकर लोग चिंतित थे और उसके जिन्दा रहने पर जश्न मना रहे हैं? कोई पता ठिकाना है ? कमाल है कि कोई भी नही लिख रहा कि यह भ्रमजाल है। वाह री व्यवसायिकता! बड़ी दिलचस्पी से आकर्षक शब्द और चित्रो के साथ इसे इस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे कोई इसमें वास्तविकता हो। और कौन लोग हैं ऐसा करने वाले? जो प्रतिमाओं के दूध पीने या आंसू निकलने पर अंधविश्वास का शोर मचाते हैं । मगर जनाब ! एक कल्पित पात्र के लिए लोगों के मन में झूठे जज्बात पैदा करना एक भ्रमजाल रचना नहीं तो और क्या है?

आप यह कतई नहीं समझें कि मैं हेरी पॉटर की किताब पढने का विरोध कर रहा हूँ। अगर आपको किताब पढ़ना है और मिल जाती है तो बडे चाव से पढो। मैं तो इससे भी आगे बढकर इसके लेखक की भी प्रशंसा करूंगा कि आज के इस इलेक्ट्रोनिक युग में किताबों के प्रति लोगों का रुझान पढने के लिए बनाए रख सके। मैं तो उस भ्रमजाल के बात कर रहा हूँ जो व्यवसाय में रचे जाते हैं । मैं जेम्स हेडली की किताबें ख़ूब पढता था और वह इस तरह बाजार में पेश की जाती थी जैसे एकदम नईं हौं। एक बार मैंने उनके बारे में एक जगह पढा तो पता चला कि उनका तो मेरे पढ़ना शुरू करने से पहले ही देहावसान हो चूका था। कुछ लोग तो कहते हैं इस नाम का कोई लेखक ही नहीं था। सत्य क्या है मैं आज तक नहीं जानता। उनकी किताबें पढने में मेरी रूचि थी उनमें नहीं ।

पढना अच्छी बात है फिर इस तरह के भ्रमजाल में लोगों को डालना अजीब सा लगता है। अगर यह ठीक है तो फिर वह भी ठीक है। प्रतिमाओं में आस्था रखने वाले लोग बहुत हैं पर ऐसे अंधविश्वासों में यकीन करने वाले लोगों की संख्या नगण्य है। जितना प्रचार किया जाता है उतना अंधविश्वास मुझे कहीं जमीन पर दिखाई नहीं देता- यह अलग बात है कि किसी के विश्वास को ठेस न लगे इसीलिए कोई किसी को टोकता नहीं है। मैं स्वयं निरंकार ईश्वर का उपासक हूँ पर फिर भी मंदिरों में जाता हूँ क्योंकि वहाँ शांति पूर्ण वातावरण रहता है जहाँ ध्यान लगाने में आसानी होती है। मैं किसी भी प्रकार के अंधविश्वास में यकीन नहीं करता और किताबें भी ख़ूब पढता हूँ और मौका मिला तो हेरी पॉटर भी पढूंगा पर यह भ्रमजाल मुझे अजीब लगता है कि एक कल्पित पात्र के मर जाने पर चिंता और जिन्दा रहने का इस तरह प्रचार किया जाये ।

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