तुम भूत से क्यों इतना डरते हो
जीते जागते आदमी को
अपने क्रूर इच्छाओं, कामनाओं,
वासनाओं और स्वार्थों की वजह
रौंदते चले जाते हो
कीड़े- मकौडे के तरह
पर भूत के भय से
तुम्हारी आँखें पथरा जाती हैं
पेड के पत्ते की तरह कांपते हो
जब किसी कमजोर को अपने
अरमानों तले कुचल जाते हो
और निरीह पर कभी शब्दों के
तो कभी लकड़ी के डंडे बरसाते
तब तुम्हारी रूह मृत होती है
जो तुम्हारे पापों का बोझ नहीं
उठा पाती और इसलिये तुम्हें
वही डराती है
जब रात में तुम अकेले होते हो
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
1 comment:
भूत से हम इसकारण डरते है क्योंकि हमें भविष्य की चिंता सताने लगती है… :)
अच्छी चिंतनीय कविता है…।
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