अगर कभी आपके साथ विश्वासघात हुआ हो तो उसे भूल जाओ। नहीं भूलोगे तो अपने मस्तिष्क की नसों में अनावश्यक खिचाव पैदा करोगे और अंतत: उससे परेशानी तुम्हें ही होना है। जो हुआ है उसे अब तुम मिटा नहीं सकते, और जिसने विश्वासघात किया है वह तो तुम्हें भुलाकर बडे आनन्द से जीं रहा होगा फिर तुम अपने लिए अनावश्यक रुप से संकट क्यों बढ़ा रहे हो।
चाहे एक नहीं अनेक बार तुम्हारे साथ विश्वासघात हुआ हो फिर भी तुम विश्वास का साथ मत छोड़ना-अपने कर्तव्य से कभी नहीं डिगना। अपने कर्तव्य का निर्वहन करना हमारा धर्म है। फल देना नियति ने तय कर रखा है इसलिये उस पर छोड़ दो। विश्वास का प्रतिफल और विश्वासघात का दण्ड दोनों ही नियति ने तय कर रखे हैं। नियति के अपने नियम हैं और उसी के अनुसार वह चलती है, तुम अपने नियम पर चलो वह यह कि अपने कर्तव्य के अनुसार अपनी भूमिका निभाते जाओ ।
इस प्रथ्वी को देखो जो हम सबको पाल रही है और उसने हमारे जीवन निर्वाह के सारे साधन अपनी गोद में एकत्रित कर रखे हैं। केवल इसलिये कि हम यहाँ बहने वाली जीवन धारा के सतत प्रवाह में उसके सहयोगी हो सकें । क्या हमने कभी उसके लिए कुछ किया है अपना जीवन केवल स्वार्थों में ही बिता देते हैं। अगर कोई हमारे साथ विश्वास घात करता है तो उसमें उसका कोई स्वार्थ होता है और वह भी जीवन की धारा को प्रवाहित ही करता है। उसका हित साधन नियति ने तय किया है तो उसने यह भी तय किया कि जैसे जिसकी नीयत होगी वैसे ही उसके नतीजे भी होंगें।
क्या बबूल पर विश्वास किया जा सकता है। हाँ, अगर आप अपने घर के बाहर किसी पेड का पौधा लगाए तो उसके रक्षा के लिए बबूल के कांटे चारों और से लगा दें तो गाय , भैंस या बकरी जैसे पशु उसे नही खा पाएंगे। अगर आप ऐसे ही पौधे बो देंगे तो उन्हें वह सब खा जायेंगे। मतलब कि बबूल भी पाना विश्वास निभाता है।
इस विश्व में जीवन का आधार ही विश्वास है और वह है जीवन के प्रति निष्ठा! अगर अविश्वास के साथ चलेंगे तो वह प्रकृति के विरुद्ध होगा और उससे हमारा शरीर ही रुग्ण होगा और साथ ही बढेगा मानसिक संताप और हम अपने आपको ही एक तरह से दण्ड देंगे । अत: न केवल अपने जीवन में विश्वास को अपनाएं बल्कि स्वयं भी विश्वस्त बनने का प्रयास करें। कितना भी विश्वासघात हो हमें विश्वास का साथ नहीं छोड़ना चाहिऐ। हाँ सतर्क होना चाहिए पर अविश्वास के साथ नहीं बल्कि विश्वास के साथ। कोई धोकिहा न दे इसके लिए सतर्क रहना चाहिऐ पर कोई दे जाये तो सारी दुनियां को अविश्वसनीय नहीं बताना चाहिए ।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
1 comment:
सही लिखा है आपने ।
Vivek Gupta
mailtovivekgupta@gmail.com
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