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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/12/07

जिंदगी का हिसाब

गुजरा हूँ जिन राहों से
उनका कोई हिसाब नहीं रखा
कई धोखे खाए
पर दुश्मन नहीं बनाए
दोस्तो से कोई शर्तों का
कभी हिसाब नहीं रखा
किसी के दिल में क्या है मेरे लिए
कभी किसी से पूछा नहीं
कौन क्या है मेरे दिल में
यह अपने पास ही रखा
कुछ ने समझा कि इसे ठग लिया
मैं हंसता हूँ क्योंकि मैने अपने को
ठगे जाने के लिए हमेशा तैयार रखा
दोस्तो की उम्मीद पूरी करने की
कोशिश हमेशा मन में रखी
उनसे कुछ मिले यह ख़्याल नहीं रखा
यही वजह हारता दिखा पर
कभी कुछ खोया नहीं
क्योंकि पाकर कुछ अपने पास नहीं रखा

1 comment:

Anonymous said...

behad khoobsoorat likha hai aapne.
shukriya.

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