दीपावली हर वर्ष आती है और समाज के हर वर्ग का सदस्य अपने ढंग से इसका आनंद उठता है। इन त्योहारों को सतत मनाने की प्रक्रिया इसलिए शुरू हुई ताकि लोगों को अपने धर्म और संस्कृति याद रखने में चिंतन करने में सहायता मिल सके और साथ में आनंद भी मिल सके। सभी त्यौहार मनाने के लिए लोग बडे उत्साहित रहते तो केवल आनंद उठाने के लिए चिंतन से उनका वास्ता नहीं रहता। बहुत कम लोग इस बात को याद रखने का प्रयास करते हैं कि वह त्यौहार किस उपलक्ष्य में मनाया जा रहा है।
दीपावली का त्यौहार भगवान् श्री राम के चौदह वर्ष बनवास समाप्त होने के वापस होने पर उनके अपने शहर में वापस आने पर अयोध्यावासियों ने जो खुशी मनायी थी उसके तारतम्य में यह शुरू हुआ। अयोध्यावासियों ने यह त्यौहार अपने राजा की वापसी पर मनाया था पर भारतीय जनमानस ने उन्हें भगवान् स्वरूप अपने हृदय स्थल में स्थापित कर इसे मनाना जारी रखा। अयोध्यावासियों ने भगवान् श्री राम के राज्य का भले ही क्षणिक भौतिक सुख का लाभ उठाया पर उनकी लीलाओं ने पूरे जनमानस में जो प्रभाव छोडा उन्हें हृदय नायक बना दिया।
भगवान श्रीराम ने राज्य किया पर उन्होने राज्य सुख का उपयोग अपने हित के लिए किया हो या उसके सुखों में डूबे रहे हों ऐसी चर्चा कहीं नहीं मिलती। उन्होने राज्य लक्ष्मी और उसके वैभव का उपयोग अपने लिए किया ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता। मन,वचन और कर्म से वह समाज के लिए समर्पित रहे-इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोतम कहा जाता। जीवन भर एक पत्निव्रता रहने का व्रत उन्होने लिया और उसको निभाया। राज्य छोड़कर चौदह वर्ष खुशी के साथ वन में रहे पर सीताहरण प्रसंग में कुछ क्षणों को छोड़कर कभी विचलित नहीं हुए। धर्म स्थापना का काम फिर भी उन्होने शुरू किया। सच तो यह है कि वह एक सभ्य समाज की स्थापना का सन्देश उन्होने सबसे पहले दिया। वह नहीं चाहते थे कि लोग पशुओं की तरह असभ्यता से जीवन बिताएं। वह चाहते थे कि स्त्री को सम्मान से देखा जाये और सबको अपने मन के हिसाब से भगवान् की आराधना का अधिकार हो। उनके समय में राक्षस वनों में रहने वाले तपस्वियों के तप,ध्यान और यज्ञ-हवन आदि में बाधाएं पैदा करते थे और इसलिए उनका उन्होने संहार करना शुरू किया। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि वह राक्षसों की भक्ति विधि से कोई विरोध रखते थे। राजा होते हुए भी उन्होने सबके हित में अपना हित देखा-हो कि आज भी अनुकरणीय है।
ऐसे त्यौहारों के अवसर पर महापुरुषों की चर्चा करना भी जरूरी हैं जिनको स्मरण करते हुए यह त्यौहार मनाये जाते हैं। मैंने अपने अनेक लेखों में भगवान श्री राम के बारे चर्चा की है और मेरा कहना स्पष्ट है कि कई लोग चाहते हैं भगवान् श्री राम की जगह उनके इष्ट समाज के इष्ट बने ताकि वह अपना प्रभा समाज पर कायम कर सकें। कई लोगों में-को जिन्हें सब कुछ मिल जाता है पर समाज में भगवान् के रूप में स्थान नहीं मिलता- यह देखकर निराशा आती है कि उनका चरित्र वैसा नहीं हो सकता और वह भगवान् नहीं बन सकते। अपनी महत्वांकक्षा की पूर्ति न होने पर तमाम तरह के आक्षेप करते हैं या असितत्व पर सवाल उठाते हैं। यह भगवान् श्री राम की लीलाएं ही हैं कि उन्होने ऐसा चरित्र बहुत कठिनाईयाँ झेलते हुए भी व्यतीत किया और वह नैतिकता और मर्यादा के प्रतीक बन गए। उन भगवान् श्री राम को मेरा नमन और सब भक्तो को दीपावली के शुभकामनाएं।
दीपावली का त्यौहार भगवान् श्री राम के चौदह वर्ष बनवास समाप्त होने के वापस होने पर उनके अपने शहर में वापस आने पर अयोध्यावासियों ने जो खुशी मनायी थी उसके तारतम्य में यह शुरू हुआ। अयोध्यावासियों ने यह त्यौहार अपने राजा की वापसी पर मनाया था पर भारतीय जनमानस ने उन्हें भगवान् स्वरूप अपने हृदय स्थल में स्थापित कर इसे मनाना जारी रखा। अयोध्यावासियों ने भगवान् श्री राम के राज्य का भले ही क्षणिक भौतिक सुख का लाभ उठाया पर उनकी लीलाओं ने पूरे जनमानस में जो प्रभाव छोडा उन्हें हृदय नायक बना दिया।
भगवान श्रीराम ने राज्य किया पर उन्होने राज्य सुख का उपयोग अपने हित के लिए किया हो या उसके सुखों में डूबे रहे हों ऐसी चर्चा कहीं नहीं मिलती। उन्होने राज्य लक्ष्मी और उसके वैभव का उपयोग अपने लिए किया ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता। मन,वचन और कर्म से वह समाज के लिए समर्पित रहे-इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोतम कहा जाता। जीवन भर एक पत्निव्रता रहने का व्रत उन्होने लिया और उसको निभाया। राज्य छोड़कर चौदह वर्ष खुशी के साथ वन में रहे पर सीताहरण प्रसंग में कुछ क्षणों को छोड़कर कभी विचलित नहीं हुए। धर्म स्थापना का काम फिर भी उन्होने शुरू किया। सच तो यह है कि वह एक सभ्य समाज की स्थापना का सन्देश उन्होने सबसे पहले दिया। वह नहीं चाहते थे कि लोग पशुओं की तरह असभ्यता से जीवन बिताएं। वह चाहते थे कि स्त्री को सम्मान से देखा जाये और सबको अपने मन के हिसाब से भगवान् की आराधना का अधिकार हो। उनके समय में राक्षस वनों में रहने वाले तपस्वियों के तप,ध्यान और यज्ञ-हवन आदि में बाधाएं पैदा करते थे और इसलिए उनका उन्होने संहार करना शुरू किया। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि वह राक्षसों की भक्ति विधि से कोई विरोध रखते थे। राजा होते हुए भी उन्होने सबके हित में अपना हित देखा-हो कि आज भी अनुकरणीय है।
ऐसे त्यौहारों के अवसर पर महापुरुषों की चर्चा करना भी जरूरी हैं जिनको स्मरण करते हुए यह त्यौहार मनाये जाते हैं। मैंने अपने अनेक लेखों में भगवान श्री राम के बारे चर्चा की है और मेरा कहना स्पष्ट है कि कई लोग चाहते हैं भगवान् श्री राम की जगह उनके इष्ट समाज के इष्ट बने ताकि वह अपना प्रभा समाज पर कायम कर सकें। कई लोगों में-को जिन्हें सब कुछ मिल जाता है पर समाज में भगवान् के रूप में स्थान नहीं मिलता- यह देखकर निराशा आती है कि उनका चरित्र वैसा नहीं हो सकता और वह भगवान् नहीं बन सकते। अपनी महत्वांकक्षा की पूर्ति न होने पर तमाम तरह के आक्षेप करते हैं या असितत्व पर सवाल उठाते हैं। यह भगवान् श्री राम की लीलाएं ही हैं कि उन्होने ऐसा चरित्र बहुत कठिनाईयाँ झेलते हुए भी व्यतीत किया और वह नैतिकता और मर्यादा के प्रतीक बन गए। उन भगवान् श्री राम को मेरा नमन और सब भक्तो को दीपावली के शुभकामनाएं।
5 comments:
हिंदी चिटठा समुदाय को दिवाली शुभ हो
आप सब को दिवाली शुभ हो
सबके यहाँ आये खुशिया
दीये हो दिवाली के
रौशनी हो आशीर्वादों की
आये सब मिल कर
माहोल को मीठा
दिवाली पर बनाये
इस हफ्ते बिना
वाद विवाद के
संस्कार कुछ मीठे
मिल कर सब दे जाये
तीज त्यौहार
ना निकाले मित्र
मन की भडास
वैस ही ज़माने मे गम
कुछ कम नहीं है
कब कुछ हो जाये
और हम आप से दिवाली
भी ना मनाई जाये
कुछ गम भी हो तो दिवाली
पर आंखो के देखने दे सिर्फ
आतिश बाजी , दिये और , मिठाई
देश की तरक्की को देखे
भ्रम ही अगर खुशिया हमसब की
तो भ्रम मे चार दिन रहना मित्र
आशीर्वादों की रौशनी से
मन को अपने रोशन करना
आप एवं आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं।
दीपावली की शुभकामनाएं।
दीपावली की बधाई व शुभकामनाएं
तम से मुक्ति का पर्व दीपावली आपके पारिवारिक जीवन में शांति , सुख , समृद्धि का सृजन करे ,दीपावली की ढेर सारी बधाईयाँ !
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