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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/29/07

औरत के सम्मान की रक्षा बिना विकास निरर्थक

समाज में हमने अपने हिसाब से दो वर्ग बना लिए हैं, इनमें एक वर्ग तो वह है जिसने अग्रेजों द्वारा प्रदत्त शिक्षा पद्धति से अक्षरज्ञान प्राप्त किया है और पेंट शर्ट पहनकर रहता है और उसे हम सभ्रांत वर्ग कहते हैं दूसरा वह है जो मजदूर, किसान और आदिवासियों का है और जिसने नयी प्रणाली से शिक्षा प्राप्त नहीं की और मेहनत और मजदूरी करते हुए जीवन यापन करता है इसे हम असभ्रांत वर्ग का मानते हैं। हमने गुणों के आधार पर कोई वर्गीकरण नहीं किया इसलिए शायद पहनावे और रहन-सहन में आधुनिक रहने वाले लोग अपने को सभ्रांत कहते हैं और निम्न वर्ग के साथ होने वाले दुर्व्यहार को अधिक महत्व नहीं देते।

इस असभ्रांत वर्ग को कुछ तथाकथित सभ्रांत लोग तो अत्यंत हेय दृष्टि से देखते है जैसे कि उनमें कोई गुण नहीं हो जबकि कुछ लोगों को अपने सभ्रांत वर्ग के सदस्य होने का अहंकार इतना होता है कि वह गरीब, मजदूर और किसान को सम्मान योग्य मानना तो दूर उनको अपमानित कर अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हैं।

अभी एक घटना जिसमें तथाकथित सभ्रांत वर्ग के लोगों द्वारा सार्वजनिक रूप से एक आदिवासी महिला के साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया कोई पहली घटना नहीं है और न यह आखिरी होने वाली है। चूंकि यह घटना ऐसे मौके पर घटित हुई जिस समय मीडिया उस स्थान पर तात्कालिक रूप से सक्रिय था इसलिए लोगों के सामने आ गई वरना तो शायद ही किसी को पता चलता। हालांकि तथाकथित सभ्रांत वर्ग के लोगों के कुकृत्य पर शायद वैसी प्रतिक्रिया देश के अन्य भागों से नहीं आई जैसी आना चाहिऐ थी। इस देश में राम भी हुए हैं तो रावण भी और कृष्ण हुए है तो दुर्योधन भी हुए हैं। सच तो यह है कि कई लोगों के कृत्य तो रावण को भी शर्माने वाले हैं। रावण ने एक बार सीता जी का अपहरण करने के बात फिर कभी और कुकृत्य करने का दुस्साहस नहीं किया पर उसके बाद कई लोग ऐसे हुए है जो स्त्रियों के साथ अपमानजनक व्यवहार करने में बदनाम हो चुके हैं। हमें यह मानकर चलना चाहिए कि रावण और दुर्योधन ऐसी प्रवृतिया हैं जो आज भी कुछ लोगों में हैं और उनको दण्डित किया जाना चाहिए।

मैं तो यह अपने को समझा नहीं पा रहा हूँ कि कैसे कोई भी किसी भी स्त्री को अपने सामने इस कदर अपमानित होते देख सकता है। ऐसा करने वाले तो पशु हैं और उनके लिए कोई सभ्रांत शब्द लिखता है तो गलत है पर जो देख रहे हैं उनके बारे में क्या कहा जाये? पशु वह हैं नहीं क्योंकि वह स्वयं यह दुष्कृत्य कर नहीं रहे और उनको सभ्य इंसान कहकर इंसानियत का अपमान करना है। ऐसे लोग तो मृतक के समान है जो ऐसा दुष्कृत्य अपने सामने होते देख सकते हैं। मुझे यह देखकर हैरानी हो रही है कि अभी भी उसके लिए कोई आवाज बुलंद करने वाला नहीं है और राजनीतिक रूप से चर्चित घटनाओं पर मीडिया और अन्य स्वयंसेवी संगठनों का ध्यान जाता है पर कई ऐसी घटनाएँ होती हैं जो दूरदराज के इलाकों में घटित होने से कई अखबारों में बीच के पेजों पर ही महत्वहीन खबर के रूप में छप कर रह जातीं हैं। कहीं जादू टोना करने तो कहीं चुडैल कहकर औरतों को बहुत बुरे ढंग से अपमानित किया जाता है।

औरत का सबसे बडा धन उसकी लज्जा होती है और उसे छीनने का मतलब है उसकी प्राण लेना और मेरा विचार है कि इसके लिए तो हत्या जैसा दंड दिया जाना चाहिए-क्योंकि यह भयानक व्यवहार है। दुर्योधन ने द्रोपदी को अपमानित किया तो उसके बाद परिवार सहित विनाश का सामान करना पडा। महाभारत युद्ध से पहले पांडवों का दूत बनकर जब श्री कृष्ण हस्तिनापुर जा रहे थे तब वह उससे पहले अपनी भक्त द्रोपदी से मिलने गए तो उसने आग्रह किया कि वह किसी भी तरह युद्ध करवाएं और श्री कृष्णजी ने उससे युद्ध करवाने का आश्वासन भी दिया। श्री कृष्ण जी अपनी परम भक्त द्रोपदी के अपमान को नहीं भुला सकते थे इसलिए अपनी पूरी शक्ति कौरवों के विनाश में लगा दी। यह आश्चर्य की बात है कि इतना बड़ा उदाहरण होते हुए भी कई लोग इससे सबक नहीं लेते।
ऐसे घटनाओं पर टिप्पणियाँ कर बैठ नहीं जाना चाहिए और देखना चाहिऐ कि उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही हो रही है या नहीं। जब तक इस देश में औरतों के साथ ऐसा अपमानजनक व्यवहार होगा विकास नहीं होगा दावे चाहे कितने भी कर लिए जाएं। ऐसे मामलों में केवल संवेदना व्यक्त करने से काम नहीं चलाने वाला बल्कि ठोस कार्यवाही होना चाहिऐ और उस पर सभ्रांत वर्ग में भी जो वास्तव में सभ्रांत है उनको सतत दृष्टि रखना चाहिए।

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