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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/30/07

रिश्तों की ग़लतफ़हमी

उनके पास आते ही सुखद
अहसास पास आ जाते हैं
सारे गिले-शिकवे हम
पल भर में भूल जाते हैं
इसीलिए कहते हैं कि
जो शरीर के पास है
वही दिल के पास है
क्योंकि दिल ही है वह
जो आदमी को अपने चाहने वालों के
पास ले जाता है
वरना तो पास रहने वाले से ही
बहुत दूर अपने को पाते हैं
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अपनों के मुहँ से बोला गया
सहानुभूति का एक शब्द भी
दिल में उम्मीद की रोशनी जगाता है
और गैरों की ढेर सारी दुआओं से
अधिक विश्वास जगाता है
शायद इसलिए ही
अपने भी इतराते हैं
हमदर्दी के शब्दों को जुबान पर
लाने से कतराते हैं
अपने दिल को अपने से ही छिपाते हैं
रिश्तों की यही ग़लतफ़हमी है
जिनके दिल टूटते हैं
वह उसे गैरों में लगाते हैं
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1 comment:

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत सुंदर और सारगर्भित , बधाई स्वीकारें !

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