आँख के अंधे अगर हाथी को
पकड कर उसके अंगों को
पकड लें
अपने बुद्धि के अनुसार
उसके अंगों का बयान
कुछ का कुछ कर लें
तो चल भी सकता है
पर अगर अक्ल के अंधे
रबड़ के हाथी को पकड़ कर
असल समझने लगें तो
कैसे हजम हो सकता है
कभी सोचा भी नहीं था कि
नक़ल इतना असल हो जायेगा
आदमी की अक्ल पर
विज्ञापन का राज हो जायेगा
हीरा तो हो जायेगा नजरों से दूर
पत्थर उसके भाव में बिकता नजर आएगा
कौन कहता है कि
झूठ से सच हमेशा जीत सकता है
छिपा हो परदे में तो ठीक
यहाँ तो भीड़ भरे बाजार में
सच तन्हाँ लगता है
इस रंग-बिरंगी दुनिया का हर रंग भी
नकली हो गया है
काले रंग से भी काला
आदमी के मन का लगता है
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
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