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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/1/07

कौटिल्य का अर्थशास्त्र:दुर्गुण संक्रामक रोग की तरह होते हैं

  • चंपा के साथ रहने पर तिलों में वैसे ही सुगन्ध आ जाती है, रस वैसी ही नहीं खाया जाता है पर उसकी गंध तिलों में आ जाती है इस कारण अपना प्रभाव अवश्य डालते हैं। वह संक्रामक माने जाते हैं।

अभिप्राय- किसी व्यक्ति में कोई अच्छा गुण है पर वह यदि बुरे लोगों की संगति में आ जाता है तो उनके दुर्गुणों का प्रभाव उस पर आ जाता है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति अच्छा लगे तो यह भी देखना चाहिये कि वह किन लोगों के बीच रह रहा है और उसका उठाना बैठना किनके साथ है और उसका घर कैसा है। यदि उसकी पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि ठीक नहीं है तो यह मानना चाहिए कि उसमें वह दुर्गुण भी होंगे।

  • जल का गंगाजल का प्रवाह जब सागर में बह जाता है तब वह पीने योग्य नहीं रहता, विद्वान के लिए यह उचित है कि अशुभ गुण वाले का आश्रय कभी न ले अन्यथा वह भी समुद्र में मिल गए जल के समान होगा।

अभिप्राय -जिन लोगों के मन स्वच्छ हैं और जिन्हें हिंसा, पाप या अन्य अपराध करने से डर लगता है उन्हें दुष्ट प्रकृतियों के व्यक्तियों से दूर रहना चाहिऐ, अगर उनकी सोहबत करेंगे और सतत मिलते रहेंगे तो उन पर भी धीरे-धीरे इसका प्रभाव पडेगा। इसके अलावा संपर्क कायम करते हुए यह भी देखना चाहिऐ कि हमारे संस्कार और परिवार कैसा है और जिससे संपर्क कर रहे हैं उसका कैसा है , यह भी देखना चाहिए। ऊपर लिखे गए पहले पैराग्राफ में भी इसी बात की जानकारी दी गयी है।

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