जब दिल में प्यार नहीं होगा
तब जुबान से निकले शब्दों में
कैसे झलकेगा
जब खून में नहीं हैं हमदर्दी तो
सुर में दर्द कैसे लगेगा
यूं ही हवा में बाते करते हुए
बीत गए बरसों
अब क्या उम्मीदों का
आसरा लगेगा
अपने जजबातों से ही जो खेलते हैं
आंखों से खूबसूरत नजारे देखने की बजाय
खून से रंगे स्याह पन्नों को
पढ़ने में उनको ठेलते हैं
हादसों को देखने-सुनाने की चाह में
आदमी भूल गया है यह बात
जैसे देखेंगे ख्वाब
वैसे ही नजारे सामने आयेंगे
फिर भी दूसरों के दर्द को देखकर
हमदर्दी की बजाय
यही होती है ख्वाहिश कि
किसी को दर्द पैदा हो
तो उसे हम सहलाएं
लोग इस जहाँ में अपने दिल से
बुलाए दर्द को ही झेलते हैं
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
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