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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/16/07

नये और फ्लॉप लेखक स्वाध्याय के लिए लिखें (hindi ke lekhak aur kavi-hindi lekh)

अंतर्जाल पर हिन्दी के लेखकों के साथ पाठकों की संख्या बढ़ रही है और जैसे-जैसे लोगों को यहाँ हिन्दी में लिखने की जानकारी मिलेगी इस्मने उतरोत्तर बढोतरी होगी। मैं हमेशा कहता आया हूँ की हिन्दी के लिए पाठक इसी देश में मिलेंगे और जिन्हें अपने ब्लोग से रोजगार अर्जित करना हैं उनके लिए इस देश के पाठकों से उम्मीद करना ठीक रहेगा। जब हिन्दी विदेशियों को यहाँ रोजगार दिला रही है तो अपने देश के लोगों के लिए यह संभव क्यों नहीं है?

जब से मैंने ब्लागस्पाट.कॉम के ब्लोगों पर लगाए काउंटरों का अवलोकन शुरू किया है यह साफ लग रहा है कि इस देश के पाठकों की संख्या अधिक है। इसमें संशय नहीं है कि भारत के बाहर लोग भी बहुत है और नियमित रूप से इन ब्लोग को देख रहे है और उसी के कारण कुछ ब्लोग लिखने वाले कभी रोमन लिपि तो कभी वर्गीकरण के विषयों पर अपने विचार इस तरह व्यक्त करते हैं कि केवल विदेशी पाठक ही इनके लिए उपलब्ध हैं और देश के पाठकों से कोई अधिक आशा नहीं है। मेरा मानना इससे अलग रहा है कि अगर दुनिया के हर क्षेत्र के लोग अर्थार्जन के लिए भारत की तरफ देख रहे हैं तो फिर हिन्दी ब्लोग में आय के अर्जन का जरिया केवल अपना देश ही हो सकता है, हाँ विदेश में रहने वाले भारतीय इसे अभी तक जिस तरह इसे ऊर्जा देते रहे हैं वह प्रशंसनीय है। पहले मेरे को भी लगता था कि इतने सारी किताबें और अखबार होते हुए भला हिन्दी का पाठक अंतर्जाल पर क्यों आयेगा? पर मैंने जिन लोगों को अपनी वेब साईटों के पते दिए हैं वह इनको न बल्कि दिलचस्पी से पढ़ रहे हैं बल्कि मेरे ब्लोग पर कमेन्ट देने वालों और लिंकित ब्लोग को भी पढ़कर मुझसे इस बारे में पूछते हैं। वह लोग ब्लोग नहीं लिखते पर पढ़ने का मजा लेने में पीछे नहीं है।
मेरे कुछ मित्र जो मुझे अंतर्जाल के बाहर भी मुझे पढ़ चुके हैं वह अब इस बात से संतुष्ट हैं कि इस पर बहुत अधिक लंबा न लिखा जा सकता है और न पढा जा सकता है इसलिए मुझे अपनी रचनाओं की लंबाई यहाँ छोटी रखने पड़ेगी-साथ में यह शर्त भी रखते हैं कि उसमें मुझे गागर में सागर भरने की नीति अपनानी चाहिए। अपने अनुभव से मैंने सीखा है कि अब अपने ब्लोग पर पठनीय सामग्री लिखने वाले ब्लोगर बहुत प्रसिद्ध होते जायेंगे और उनके विषय रुचिकर होंगे तो आखिर उनको निजी क्षेत्रों से मदद भी मिलेगी-वह किस रूप में होगी यह अभी तय नहीं है पर वह विज्ञापन के रूप में भी हो सकती है या अपने पक्ष में पोस्ट लिखवाने के लिए प्रचार कराने के रूप में भी हो सकती है।

इसलिए मैं नये और फ्लॉप ब्लोगरों को यह साफ कहना चाहता हूँ कि वह लगातार लिखते रहें, और लिखते समय अपनी अभिव्यक्ति को बेखौफ बाहर आने दें और इस बात की परवाह न करें कि उस पर कोई क्या सोचेगा। हाँ, भाषा में सभ्यता और आकर्षण के साथ विषय के महत्त्व का भी ध्यान रखें ।

अब तो बहुत सारे ब्लोगर बहुत अच्छा लिखने लगे हैं और उनसे लोगों को सीखना चाहिए। अब मैं ऐसे ब्लोगरों पर समय मिलने पर समीक्षा लिखता हूँ और इसे नियमित करने का विचार भी है। हाँ, अपनी अभिव्यक्ति के साथ यह भी देखना चाहिऐ कि उस विषय से सामाजिक सरोकार को भी जोड़ना चाहिए। हम जब लिखे तो यह न समझें कि कोई बडे भारी लेखक या ज्ञानी हैं बल्कि स्वाध्याय के रूप में लिखें और लिखते हुए सीखें भी क्योंकि जब वह अपने को सिखाने लायक लिखेंगे तभी तो दूसरा उससे सीखा और समझ सकेगा ।कभी किसी पोस्ट पर प्रतिक्रिया न मिले तो निराश नहीं होना चाहिए पर अगर आप दमदारी से लिखेंगे तो आपको कमेन्ट भी मिलेगी।

चौपालों के बाहर भी दुनिया है और आम पाठक वहीं आते हैं। मैं अपने ब्लोग पर भारत के महापुरुषों के सन्देश अपने स्वाध्याय की दृष्टि से रखता हूँ और चौपालों पर उनके पाठक इतने नहीं होते पर जब व्युज देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि केवल मैं वही लिख रहा हूँ,अन्य विषयों पर इतना नहीं। भारतीय आध्यात्म की जड़ें कितनी गहरी हैं मुझे अंतर्जाल पर लिखने से ही पता लगा है। खुले विचार से जिस विषय में लिखना है लिखो। अपनी श्रेणी को लेकर अधिक मत सोचो। यह अंग्रेजी की परंपरा है अपने देश में तो मेडिकल में पढे डाक्टर जो स्वास्थ्य पर लिखते हैं वह भी कविता लिखते हैं। आपको किसी वेब साईट पर किसी श्रेणी में रखा जायेगा तो किसी और में अन्य श्रेणी में रखा जायेगा। मेरे ब्लोग कई वेब साईटों पर दिखाए जाते हैं और कुछ तो पूरी तरह अंग्रेजी में हैं।

चौपालों पर एक दोस्ताना माहौल है, आप को कमेन्ट भी तभी मिलेगी जब आप दूसरों को देंगे। सब कमेन्ट देने वाले आपको दें या सबको आप दें पाए यह जरूरी नहीं पर यह क्रम चलता ही रहेगा। एक बाट है कि कमेन्ट देने के लिए मत पढो बल्कि पढ़कर कमेन्ट दो क्योंकि कई ब्लोग ऐसे हैं जिनको पढ़कर हम सीख सकते हैं दूसरा यह कि लिखने के तरीक भी हमारे समझ में आता है-मैंने यहाँ इन ब्लोगों को देखकर ही बहुत कुछ सीखा है। मेरी तो एक और मान्यता है कि इन चौपालों पर आये बिना कोई भी अच्छा ब्लोगर नहीं बन सकता, अन्य कारणों से प्रसिद्ध होने पर किसी ब्लोगर को सफलता मिल जाये पर लिखने की वजह से वही सफल होंगे तो यहाँ पढेंगे और लिखेंगे।

मुख्य चीज है लिखना और उसमें आपको अपने विचारों और दृष्टिकोण व्यापक रखना होगा केवल चौपालों तक सीमित रहने से आपके विषय संकुचित होंगे-यह चौपालें हिन्दी के लेखकों को आपस में संपर्क रखने तथा उन्हें लिखने के लिए प्रेरित करने में ही बहुत सहायक हैं-जिस तरह बाहर चलते हुए लेखक मित्र मिलते है तो यहाँ भी आपको मित्र मिलेंगे पर अगर आप चाहते हैं कि आपको और अधिक पाठक देखे तो आपको अपनी सीमा से बाहर निकलना होगा। हालांकि व्यापक दृष्टिकोण वाले विषय चौपालों पर तभी कमेन्ट दिलवाते हैं जब आप स्वयं भी देते हैं वरना अधिक कमेन्ट नहीं दिलवाते पर बाहर अधिक संख्या में पाठक उन्हें पढ़ते हैं। यहाँ आप दूसरों का मनोबल बढाने के लिए कमेन्ट दें तो आपको भी मिलेंगे। इस प्रक्रिया में लिप्त होने से मनोबल और मित्रता बढ़ती है। मैंने यहाँ इतने सारे मित्र पाए हैं कि यकीन नहीं होता पर आखिर मेरा लक्ष्य अपनी बात अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचाना है और इसी प्रयास में भी रहता हूँ।
आखरी बात अपना ब्लोग अपने अंतर्जाल पर पढ़ने वाले मित्रों को अवश्य पढाये और इतना ही नहीं अपने उन मित्रों को उस हिन्दी टूल से अपने मित्रों को अपने ईमेल पर हिन्दी लिखने के लिए प्रेरित करें। अभी इसलिए लोग हिन्दी पढ़ने में नाक भौं सिकोड़ते हैं क्योंकि इस पर लिख नहीं सकते-इसलिए अंग्रेजी का ठुमका लगते हैं कि हमारी कहीं सामने वाले को हेठी न लगे। अगर बेहतर विषय होंगे तो हिन्दी के पाठक बढेंगे। यह मैंने अपने जैसे नये और फ्लॉप ब्लोगरों को अपने संक्षिप्त अनुभव से जो जानकारी दे रहा हूँ। कुछ कमी पेशी रह गई हो तो अनदेखा कर देना। अभी रास्ता बहुत लंबा है और इसके लिए हम सबको प्रयास करने होंगे।
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