गांधीगिरी, गांधीवाद और गांधी मार्ग या विचारधारा तीनों शब्दों का अर्थ भले ही एक जैसे लगते है पर मेरी दृष्टि में में इनका भावार्थ एक नहीं है। हो सकता है कि कुछ लोग मुझे रूढ़ समझें पर विशुद्ध रूप से हिन्दी क्षेत्र का होने के कारण हर शब्द का अर्थ और भाव मेरे स्मृति पटल में इस तरह अंकित है कि हिन्दी भाषा के हर शब्द का अर्थ और भाव मेरे लिये सहज हो गया और मुझे किसी भी शब्द का भावार्थ समझने में कठिनाई नहीं होती ।
जब भी हिन्दी भाषा में किसी संज्ञा के साथ गिरी शब्द जुड़ता है तो वह उसके अर्थ के साथ उसके भाव और महत्त्व को कम करता है। दूसरे शब्दों में कहें कि यह उसे निम्नकोटि का भावार्थ प्रदान करता है। मैं किसी काम को लघु नहीं मानता क्योंकि अपने पेट के लिये रोजगार अर्जित करने के लिये कोई निम्न व्यसाय करने से निम्न नहीं होता है और हमारे देश में तो कई ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने इन्हीं निम्न व्यसायों से जुडे होने के बावजूद देश के आध्यात्म को ऐसी दिशा दी जिसके कारण देश आज विश्व्गुरु कहलाता है-पांडवों को भी अपने अज्ञातवास के दौरान निम्नकोटि के काम करना पड़े थे।
यहां इस चर्चा का उद्देश्य केवल भाषा और भाव का है। गिरी शब्द महत्वहीन व्यवसायों और संज्ञाओं में जोडा जाता है और कभी-कभी तो किसी नकारात्मक शब्द को प्रभावी बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है-जैसे उठाईगिरी, दादागिरी और गुंडागिरी। आजकल दो शब्द बहुत शब्द प्रचलित हैं जैसे चमचागिरी और नेतागिरी और इनका उच्चारण कोई उनका महत्व प्रतिपादित करना नहीं होता बल्कि किसी का मजाक उडाने के लिए भी किया जाता है। आपने कभी शिक्षकगिरी , चिकित्सकगिरी , व्यापारीगिरी और अधिकारीगिरी जैसे शब्द नहीं सुने होंगे। तात्पर्य यह है कि यह केवल किसी संज्ञा के मह्त्व को कम प्रदर्शित करता है। ऐसे में गांधी जी के आदर्शों को मानने वाला मुझ जैसा हिन्दीभाषी क्षेत्र का शख्स अपने आपको असहज अनुभव करता है।
अब गांधीवाद शब्द की चर्चा करें। वाद या नारे तो केवल लोगों को यह बताने के लिये हैं कि हम उनके अनुगामी हैं और उनके बारे में हम अधिक जानते हैं इसलिए हम जो कहते हैं वही मानो। अगर आप किसी भी वाद या नारे पर चलने वाले बुद्धिजीवी से उसका स्वरूप पूछें तो सब केवल रटे-रटाए नारे लगाने वाली बात कहेंगे। गरीबों और शोषितों को उठाना, महिलाओं को सम्मान दिलाना और जन कल्याण करना। सो इस पर बात अधिक क्या कहें । इन नारों और वाद पर मैं पहले भी बहुत कुछ लिख चुका हूं।
गांधी विचार या गांधी दर्शन शब्द से मेरा मन प्रुफ़ुल्लित हो जाता है। इस शब्द का प्रयोग जो व्यक्ति करता है उसके बारे में यही सोच हमारे मन में आता है यह वाकई उनके बारे में जानता है। गांधी जी ने ऐसा चरित्र जिया है जिस पर जितना भी लिख जाये कम है। उन्होने कोई अभिनय नहीं किया और न कोई ऐसा अभिनेता इस देश में हुआ कि उनके चरित्र को जी सके। हमारे देश के कुछ लोग वालीवुड का बहुत शोर मचाते हैं पर गांधीजी पर फ़िल्म बनाने वाला और उनका चरित्र निभाने वाला दोनों विदेशी थे। मतलब साफ़ है कि इस देश में उनके वाद पर बहुत चले पर दर्शन किसी ने नहीं अपनाया और ऐसा करते तो तब जब समझ में आता।
हाल में एक फ़िल्म बनी जिसमें एक अभिनेता ने गांधीगिरी की और गांधीजी के कुछ भक्त बहुत प्रसन्न हो गये। भाई लोगों को पता नहीं कि भाषा का शब्द, अर्थ और उसका भाव बहुत महत्वपूर्ण होता है। गांधीगिरी शब्द का भाव पहले समझो। इस देश की अधिकतर जनता गांव में रह्ती है वह कभी इसे उस भाव से नहीं लेगी जो तथाकथित गांधीवादी समझ रहे हैं। उन्हें यह समझ लेना चाहिये कि हिन्दी क्षेत्रों में गिरी शब्द उसका महत्व कम तो करता ही उसको हास्याभिव्यक्ति भी प्रदान करता है। फ़िर मुंबई को छोड़कर आप किसी भी हिन्दी भाषी क्षेत्र में चले जायें वहां हिन्दी ऐसी नहीं है जैसी वालीवुड की है। उनके फ़िल्मों से हिन्दी का प्रचार तो हो सकता है पर लोग वैसी बोलते नहीं है जैसी उसमें देखते और सुनते हैं।फिल्मों ने देश के चरित्र पर दुष्प्रभाव डाला है पर भाषा अभी बची हुई है।
इस सबके विश्लेषण के साथ मेरा तो यही कहना है कि मैं हमेशा गांधी मार्ग या उनके दर्शन पर चलने के लिये ही कहूंगा क्योंकि गांधिगिरी शब्द मुझे असहज कर देता है और अपने जीवन में कभी भी उसका उच्चारण नहीं कर सकता। हो सकता है मैं गलत हूं पर क्या करूं मैने हिन्दी को जिस रूप में पढा है उसके आधार पर मेरी यह समझ बनी है हालांकि मैं यह दावा भी नहीं करता की मैं एक दम सही हूँ। हिन्दी भाषा में इतनी विशेषज्ञता नहीं है कि ऐसा दावा कर सकूं
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
1 comment:
दीपक जी,आप की बात में दम है।बढिया लिखा है व विचारणीय भी है।
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