सुबह चलते-चलते
ख्याल बस यूं आया कि
कोई दर्द क्यों नहीं उभरता मन में
कि कविता लिख लूं
देखा अन्दर झाँक कर दो पाया
योग, ध्यान और प्रार्थना से उपजी
मन में ऊर्जा बहुत है
कोई पीडा उसके आगे नहीं टिक पाती
फिर सोचा
शाम ढलते -ढलते
बहुत कुछ हो जायेगा
कुछ दुख और दर्द का
भंडार एकत्रित हो जायेगा
तब कवि हृदय कुछ सोच पाएगा
सच है अगर इस दुनिया में दर्द
किसी को नहीं होता तो
कभी कविता जन्म नहीं ले पाती
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नोट-आज से सुबह चलते-चलते कभी कविताओं और संक्षिप्त टिप्पणियों के साथ नियमित प्रकाशित किया जायेगा ।
आज की टिप्पणी- ब्लोगर और साहित्यकार में यही अंतर होता है कि ब्लोगर की सूची में ब्लोग पर लिखने वाले साहित्यकारों का कभी नाम नहीं हो सकता और साहित्यकार की सूची में तो ब्लोगर और साहित्यकार किसी का नाम नहीं होता।
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
3 comments:
sundar kavita hai bhai
बिना पीड़ा के कविता का जन्म नही होता।बहुत बढिया रचना है।बधाई।
सच है अगर इस दुनिया में दर्द
किसी को नहीं होता तो
कभी कविता जन्म नहीं ले पाती
no wrods for ur poetry...
salam apko
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