रात को लिखा और पढा
उसका सुबह तक हिसाब नहीं रखा
प्रात:काल के शुद्ध पवन को जो स्वाद चखा
विकार रहित तन और मन
इससे बड़ा क्या हो सकता है धन
अगर भोगा होता तो जान पाते सखा
योग साधना, प्राणायाम, ध्यान और प्रार्थना से
चित्तवृति में अपूर्व शांति आती है
चेहरे पर कांति आती है
विचारों में अच्छी खुशबू छा जाती है
जब करोगे धारण यह सन्देश
तब जान पाओगे इस जीवन में
क्या चमत्कार रखा
मन में दर्द और पीडाओं का
विस्तार होता है अनंत
सुबह ही कर दो उनका अंत
फिर दिन भर तो उसके साथ रहना है
दिन भर उनको सहना है
अपनी साँसों में भर लो ताजगी
फिर दिन में कुछ ताजा नहीं रखा
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पुन्छ्ला टिप्पणी-कौन क्या लिखता है, क्या बोलता है, क्या देखना चाहता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह पढता कैसा है, सुनता क्या है , उसके संस्कार कैसे है और उसकी संगत कैसी है। इसलिए अच्छा पढो, अच्छा सुनो, अच्छे विचार करो तो स्वयं अपने गुरु बन जाओगे और अपने आपको पढाओगे.
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
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*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
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