आज एक अख़बार में गूगल सर्च इंजन पर भारतीय यूजर्स द्वारा की गयी खोजबीन की जानकारी छपी है और इसमें राजनेता, खिलाडी, फिल्मी सितारे तथा फिल्मों की खोज अधिक की गयी हैं। इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम सबसे ऊपर है यह एक संतोष का विषय है। हालांकि केवल इन्हीं विषयों को खोजा गया है यह तो कहीं नहीं लिखा पर इतना तय है कि इन्हें अधिक खोजा गया होगा-ऐसा लगता है।
अगर आंकडों के अलावा धरातल पर वास्तविकता को देखा जाये तो कंप्यूटर पर अंतर्जाल पर शौक से काम करने वालों के संख्या अधिक है और उन्हें चाहिए केवल मनोरंजन। हालांकि इसके लिए टीवी है पर उसमें सब अपनी इच्छा नहीं चल सकती और इंटरनेट पर अपनी मर्जी से अपना विषय देखा जा सकता है, यही कारण है कि मनोरंजन के शौकीन अब इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं। मैं अनुमान से कह सकता हूँ कि अधिकतर यूजर्स फिल्मों और अभिनेताओं में अधिक रूचि ले रहे हैं। उसके बाद कुछ लोग ऐसे-वैसे सीन देखने के लिए लालायित रहते हैं। चेट करने वालों की संख्या भी है शायद वह उतनी नहीं है कि गूगल के आंकडों में प्रचार योग्य हो ।
कल ही मैं एक ब्लोग देख रहा था जिसमें टीवी चैनलों के दर्शकों की संख्या कम होते जाने का जिक्र भी था। ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि वह जिस पेटर्न पर चल रहे उसमें उनका खुद के रचनात्मक योगदान का अभाव है और इसी कारण उसके दर्शक अब इंटरनेट यूजर्स बनते जा रहे हैं। जब यहाँ अपने मन के अनुसार मनोरंजन उपलब्ध है तो फिर क्यों जानकार दर्शक उनके कार्यक्रम का इन्तजार करेगा।
अख़बार में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर यह तो कतई नहीं कहा जा सकता कि छात्र या नवयुवक इसका इस्तेमाल अपने ज्ञान और विज्ञान के विषयों से संबधित सामग्री देखने के लिए कर रहे हैं। साहित्य का स्थान तो बहुत बाद में आता है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि शिक्षा और तकनीकी भले ही आधुनिक हो पर अपना समाज विवेक के आधार पर वहीं खडा है जहाँ उसके आने से पहले था। आधुनिकता पहनावे और साधनों में तो आयी है पर मूल प्रवृति में सुधार नहीं है। वही फिल्में, अभिनेता और म्यूजिक कंप्यूटर भी लोगों के प्रिय विषय हैं जैसे पहले था। सही कहते हैं कि साक्षर होने सब शिक्षित नहीं हो जाते।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
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