कड़कडाती सर्दी की सुबह में
सोने की तरह धूप बिखेरता सूर्य
दृदय को शीतलता देता है
तेज चलती पवन से काँपने लगता है बदन
उससे बचने के लिए करते जतन
प्रात:काल में
जब करते हैं कपाल भारती प्राणायाम
और सूर्य नमस्कार के आसन
तब उगने से पहले सूर्य भेज देता अपनी किरण
जब बिस्तर में ही सर्दी से काँप रहा हो बदन
उठने का नहीं करता मन
योग साधना है वह हथियार जब
हम लड़ सकते हैं आलस्य से
वरना तो कहीं नरक नहीं है
वहीं है जहाँ हम रह रहे हैं
सुख कोई पेड पर लटकी वस्तु नहीं
जो हमारे हाथ में आ जाये
मन की अनुभूति है
हम तब तक नहीं खुश रह
सकते जब तन स्वयं न करें जतन
चाणक्य ने कहा है-अपने निरंतर अभ्यास से मनुष्य अनेक गुण प्राप्त कर लेता है पर कुछ गुण अभ्यास से नहीं प्राप्त होते हैं क्योंकि वह स्वाभाविक होते हैं-जैसे दानशीलता, मधुर बोलना, वीरता और विद्वता।
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
1 comment:
योग पर,बढिया संदेश देती एक बढिया रचना है।बधाई\
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